फैशन का जलवा

ऐसी है फैशन की दुनिया, जहां कभी शाम ढलती ही नहीं है। यही वजह है कि आज के युवाओं में फैशन को लेकर पैशन है। दिल्ली फैशन वीक, पेरिस, मिलान और न्यूयॉर्क में आकर्षक परिधानों में रैंप पर कैटवॉक करती मॉडल और हर डिजाइन पर लोगों की तालियों की बरसात! यह मंजर डिजाइनर की सफलता की कहानी बयां करता है। लोगों को सुंदर बनाने का जुनून आपमें है, तो फैशन डिजाइनिंग का क्षेत्र आपका इंतजार कर रहा है। आज भारतीय फैशन की दुनिया से निकलकर रितु बेरी, मनीष मलहोत्रा, रोहित बल जैसे तमाम डिजाइनर दुनिया भर में अपने हुनर का डंका बजा रहे हैं।

कैसे लें एंट्री

इस क्षेत्र में कदम रखने के लिए फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करना जरूरी है। नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी और पर्ल के अलावा और भी कई इंस्टीटयूट्स हैं, जहां से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया जा सकता है। फैशन डिजाइनिंग के अंडर ग्रेजुएट कोर्स में एडमिशन के लिए 12वीं पास होना जरूरी है। निफ्ट जैसे इंस्टीटयूट में एडमिशन के लिए रिटेन एग्जाम, ग्रुप डिस्कशन और पर्सनल इंटरव्यू के दौर से गुजरना पडता है। पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में प्रवेश के लिए किसी भी विषय में स्नातक होना आवश्यक है। फैशन डिजाइनिंग का क्षेत्र तीन ब्रांचों में विभाजित है-गारमेंट डिजाइन, लेदर डिजाइन और एक्सेसरीज व ज्यूलॅरी डिजाइन। इसके अलावा फैशन बिजनेस मैनेजमेंट, फैशन रिटेल मैनेजमेंट, फैशन मार्केटिंग, डिजाइन प्रोडक्शन मैनेजमेंट आदि कोर्स में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं। इन सभी क्षेत्रों में मान्यता प्राप्त संस्थानों से ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स किए जा सकते हैं।

फैशन डिजाइनिंग का क्रेज

टीवी सीरियल और फिल्म के दीवानों की देश में कमी नहीं है। खासकर टीवी सीरियल की पैठ तो आज घर-घर में हो चुकी है। टीवी सीरियल्स और फिल्मों में डिजाइन कपडों को देख कर लोगों का के्रज फैशन के प्रति अब देखते ही बनता है। यह भी एक वजह है, जिससे पिछले कुछ वर्षो में फैशन इंडस्ट्री में काफी उछाल आया है। उद्योग चैंबर एसोचैम के मुताबिक, भारतीय फैशन इंडस्ट्री वर्ष 2012 तक 7 अरब डॉलर के आंकडे को पार कर जाएगी। जिस तरह से लोगों में आज फैशन एक्सेसरीज के प्रति दीवानगी बढती जा रही है, उससे इस क्षेत्र का फलक और बडा होने की उम्मीद है।

फैशन की दुनिया

अक्सर लोगों को लगता है डिजाइनर सपनों की दुनिया में विचरण करते रहते हैं। लेकिन असलियत यह है कि उसका काम काफी चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि बाजार की मांग के अनुरूप किसी खास प्रोडक्ट, सीजन और प्राइस को ध्यान में रखकर उसे काम करना पडता है। पिछले कुछ वर्षो में यह क्षेत्र तेजी से बदला है। देखा जाए, तो कुछ साल पहले तक भारत में एक भी ऐसा फैशन डिजाइनर नहीं था, जिसे वैश्विक स्तर पर पहचाना जाए। लेकिन आज रितु कुमार, रितु बेरी, रोहित बल, सुनीत वर्मा, जेजे वालिया, तरुण तहिलियानी जैसे नामों की चर्चा दुनिया भर में है। रितु बेरी ने तो हॉलीवुड के बडे स्टार निकोलस किडमन और कैट होम्स के कपडे भी डिजाइन कर चुकी हैं।

नौकरी के अवसर

क्रिएटिव लोगों के लिए यहां मौकों की कमी नहीं है। फैशन डिजाइनिंग का जॉब काफी चकाचौंध भरा होता है। यहां हमेशा कुछ नया करने की चुनौती होती है। इस समय फैशन डिजाइनिंग के क्षेत्र में गारमेंट और एक्सेसरीज डिजाइनर की काफी डिमांड है। फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद फैशन हाउस और मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स में रोजगार के अच्छे अवसर हैं। यहां आप प्रोडक्शन, फैशन मार्केटिंग, डिजाइन प्रोडक्शन मैनेजमेंट, फैशन मीडिया, क्वालिटी कंट्रोल, फैशन एक्सेसरीज डिजाइन और ब्रांड प्रमोशन में काम कर सकते हैं। इसके अलावा कॉस्टयूम डिजाइनर, फैशन कंसल्टेंट, टेक्निकल डिजाइनर, ग्राफिक डिजाइनर, प्रोडक्शन पैटर्न मेकर, फैशन कॉर्डिनेटर आदि के रूप में भी शानदार करियर बना सकते हैं।

सैलॅरी की चमक

फैशन डिजाइनिंग में सैलॅरी भी काफी बेहतर है। शुरू-शुरू में आपकी सैलॅरी 10,000 से 14,000 रुपये महीने हो सकती है। लेकिन दो-तीन साल बाद, जब आप डिजाइनिंग में कुशल हो जाते हैं, तो सैलॅरी काफी बढ जाती है। जब आप इस फील्ड में एक बार जाने-पहचाने नाम बन जाते हैं, तो लाखों की कमाई कर सकते हैं।

इंस्टीटयूट वॉच

नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ डिजाइन, अहमदाबाद

www.nid.edu

नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ फैशन डिजाइन, चंडीगढ

www.nifd.net

नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, गांधीनगर, बेंगलुरु

www.niftindia.com

नॉर्थ इंडिया इंस्टीटयूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, मोहाली

www.niiftindia. com

पर्ल एकेडमी ऑफ फैशन, नई दिल्ली

www.pearlacademy.com

गवर्नमेंट इंस्टीटयूट ऑफ गारमेंट टेक्नोलॉजी

www. punjabteched. com

एफडीडीआई, नोएडा

www.fddiindia.com

सिम्बॉयोसिस इंस्टीटयूट ऑफ डिजाइन

www.symbiosisdesing.ac.in

इंटरनेशनल इंस्टीटयूट ऑफ फैशन डिजाइन, नई दिल्ली

www.nifd.net

सत्यम फैशन इंस्टीटयूट, नोएडा

www.satyamfashion.ac.in

इंटरनेशनल इंस्टीटयूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली

www.iiftindia.net

कोर्स का क्रेज

फैशन डिजाइनिंग कोर्स के प्रति स्टूडेंट्स में जबर्दस्त के्रज देखा जा रहा है। कितना आकर्षक है यह करियर..

कितना रोमांचक है फैशन डिजाइनिंग?

इस फील्ड में इतना रोमांच है कि आप हर समय जोश और जज्बे से भरे रहते हैं। यहां कुछ भी ठहरा हुआ नहीं है। आज यहां रातों-रात सारे समीकरण बदल रहे हैं। मौसम के हिसाब से कट और कलर तो बदलते ही हैं, लेकिन अब तो लगता है कि स्टाइल और मैटीरियल आदि चलन में आने से पहले ही बदल जाते हैं!

कैसे बना जा सकता है सफल फैशन डिजानइर?

इस क्षेत्र में सफल होने के लिए जरूरी है कि ड्राइंग, स्केच की स्किल के साथ-साथ मार्केट ट्रेंड और कलर की भी अच्छी समझ हो। आपके आइडियाज दूसरे से अलग हों। इसके साथ ही डिजाइनर को प्रोडक्शन की जानकारी के अलावा टेक्नोलॉजी, बिजनेस एथिक्स, कॉस्टिंग आदि की अच्छी समझ भी जरूरी है।

कितनी संभावनाएं हैं इस फील्ड में?

आज फैशन इंडस्ट्री एक रोमांचक दौर से गुजर रही है। इस फील्ड में रोजगार के अवसर भी खूब हैं। डिजाइनरों के लिए प्रोडक्शन, मार्केडाइजिंग कंपनी, फैशन रिटेल कंपनी, बुटिक्स, एक्सपोर्ट हाउस आदि में नौकरियों की अच्छी संभावनाएं हैं। इसके अलावा फ्रीलांस के तौर पर काम करने का भी भरपूर मौका है। यदि आप कुछ वर्षो का अनुभव हासिल कर लेते हैं, तो खुद का बुटिक या फिर फैशन हाउस भी खोल सकते हैं।

(बातचीत पर्ल एकेडमी ऑफ फैशन के गु्रप डायरेक्टर एकेजी नैयर से)

अमित निधि

दुनिया साइबर लॉ की

साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट की चर्चा होते ही अंकित फाडिया का नाम सामने आ जाता है, जिन्होंने ओसामा बिन लादेन के लोगों द्वारा भेजे गए एक ई-मेल को डिकोड करने में सफलता हासिल की थी। आए दिन साइट हैकिंग से लेकर ऑनलाइन बैंकिंग फ्रॉड अथवा साइबर बुलिंग की खबरें सुनने को मिलती रहती हैं। यही है साइबर क्राइम और इन कामों को अंजाम देता है कम्प्यूटर तकनीक के जरिए एक हाइटेक अपराधी। इसे रोकने के लिए जरुरत होती है साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट की।

साइबर क्राइम

पूरी दुनिया में साइबर स्पेस का अपना कानून है, जिसका उपयोग इंटरनेट के माध्यम से होने वाले अपराधों से निपटने के लिए किया जाता है। इंटरनेट के जरिए जब किसी को ईमेल या मैसेज आदि से परेशान किया जाए, तो उसे साइबर बुलिंग कहते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार पचास फीसदी अमेरिकी किशोर किसी न किस रूप में साइबर बुलिंग के शिकार हैं। मनोवैज्ञानिकों की मानें तो इसका असर किसी को मारने पीटने से भी ज्यादा भयावह होता है।

कोर्स

इस क्षेत्र में एक्सपर्ट बनने के लिए आपको पीजी डिप्लोमा, डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स में से किसी एक कोर्स को करना जरूरी है। हालांकि कम संस्थानों में ही इसके लिए अलग से कोर्स उपलब्ध हैं। लेकिन अधिकतर संस्थानों में इससे संबंधित एक या दो सब्जेक्ट अवश्य पढाए जाते हैं। इस कोर्स के अंतर्गत साइबर लॉ और साइबर सिक्योरिटी से जुडी मूल बातें, नेटवर्क सुरक्षा, हमलों के प्रकार, नेटवर्क सिक्योरिटी के खतरे, हमले और खामियां, सुरक्षा संबंधी समाधान और उन्नत सुरक्षा प्रणाली आदि विशेष रूप से पढाए जाते हैं। इसके साथ ही संस्थान द्वारा विद्याíथयों के लिए एक डिजिटल लाइब्रेरी की भी व्यवस्था होती है, ताकि स्टूडेंट्स इससे जुडी अन्य जानकारी भी हासिल कर सकें।

योग्यता

साइबर लॉ कोर्स में प्रवेश पाने के लिए कैंडिडेट को कम से कम 12वीं या स्नातक होना आवश्यक है। पहले से लॉ या आईटी की डिग्री हासिल कर चुके स्टूडेंट्स इसे अलग से भी पढ सकते हैं।

अवसर

आजकल सबसे ज्यादा केस साइबर क्राइम जैसे कि ऑनलाइन बैंकिंग फ्रॉड, ऑनलाइन परचेजिंग, ऑनलाइन शेयर ट्रेडिंग फ्रॉड, क्रेडिट कार्ड फ्रॉड, वेबसाइट बिगाडने आदि के दर्ज होते हैं। ऐसे में सरकारी, निजी, बैंकिंग सेक्टर, बीपीओ, आईबी, आईटी, शिक्षण-संस्थानों में इस तरह के क्राइम से निपटने के लिए साइबर लॉ एक्सप‌र्ट्स की जरूरत पडती है।

वेतन

तेजी से उभरते करियर के इस क्षेत्र में सैलरी पैकेज भी बहुत आकर्षक होती है। आरंभिक स्तर पर 15 से 20 हजार रुपये प्रति माह तक मिल जाते हैं। यदि आप किसी कंपनी से न जुडकर फ्रीलांस काम करते हैं, तो एक्सप‌र्ट्स बनने के बाद मुंहमांगा वेतन मिल सकता है।

संस्थान

जागरण इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट ऐंड मास कम्युनिकेशन, नोएडा

(www.jimmc.in)

डिपार्टमेंट ऑफ लॉ, दिल्ली यूनिवर्सिटी

(www.du.ac.in)

इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट,भगवान दास रोड, नई दिल्ली

एमिटी लॉ स्कूल, दिल्ली

(www.amity.org)

आईएमटी, मेरठ रोड, गाजियाबाद

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, इलाहाबाद

वेबसाइट : www.iiita.ac.in

फैकल्टी ऑफ लॉ, लखनऊ यूनिवíसटी, लखनऊ

स्कूल ऑफ लीगल स्टडीज, हिमाचल यूनिवíसटी, शिमला

पश्चिम बंगाल नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ज्यूडिशियल साइंस, कोलकाता

नेशनल लॉ यूनिवíसटी,जोधपुर

बनें साइबर वकील

जेआईएमएमसी के डायरेक्टर जे.आर. शरण के अनुसार, आने वाले दिनों में काफी संख्या में साइबर लॉ एक्सप‌र्ट्स की मांग बढेगी। प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश..

भारत में साइबर लॉ का क्या भविष्य है?

अभी इंटरनेट की पहुंच मेट्रो और बी ग्रेड वाले शहरों तक ही सीमित है। लेकिन धीरे-धीरे लगभग सभी क्षेत्रों में इंटरनेट या कम्प्यूटर पर निर्भरता बढ रही है। कहा जा सकता है कि आनेवाले दिनों में भारत में साइबर लॉ का अधिकाधिक विस्तार होगा।

साइबर लॉ एक्सपर्ट बनने के लिए किस तरह के गुण जरूरी हैं?

साइबर लॉ एक्सप‌र्ट्स के लिए आवश्यक है कि वे हमेशा नए-नए नियमों को जानने के लिए तत्पर हों। साथ ही कुछ व्यवहारिक गुणों जैसे साइबर क्रिमिनल को समझने की क्षमता तथा रिसर्च करने की जिज्ञासा हो। इसके साथ ही वायरस पर नियंत्रण, अकाउंट चोरी से बचाव, इंटरनेट और सॉफ्टवेयर से संबंधित मुद्दे डील करने आदि चीजों को सीखने के लिए उत्सुक हो।

यह कोर्स किसके लिए फायदेमंद हैं?

यह कोर्स खासकर लॉ स्टूडेंट्स, पेशेवर लॉयर्स, आईटी प्रोफेशनल्स, स्टूडेंट्स, सिक्योरिटी ऑडिटर्स, चार्टर्ड अकाउंटेंट्स, बैंकिंग, इंश्योरेंस और अन्य प्रोफेशनल्स के लिए काफी फायदेमंद हो सकते हैं।

इसमें प्रैक्टिकल ट्रेनिंग का महत्व है?

इस कोर्स में थ्योरी और प्रैक्टिकल दोनों का समान महत्व होता है। जब तक थ्योरी नहीं पढेंगे, प्रैक्टिकल संभव नहीं होगा।

यहां आनेवाले स्टूडेंट्स को क्या सलाह देंगे?

इस कोर्स में एडमिशन लेने से पहले यह जानकारी जरूर प्राप्त कर लें कि आपको पढना क्या है। इसके साथ ही संस्थान की फैकल्टी और प्लेसमेंट रिकॉर्ड जरूर देखें।

विजय झा

vijayjha@nda.jagran.com

डिमांड साइबर एक्सपर्ट की

साइबर लॉ में तकनीकी विषयों के साथ-साथ कानूनी पहलुओं का भी अध्ययन किया जाता है। इसके पाठ्यक्रम में टेक्नोलॉजी और लॉ दोनों विषयों के बारे में विस्तार से पढाया जाता है। आजकल हर क्षेत्र में इसकी काफी डिमांड है। क्योंकि हर संस्थान सिक्योरिटी चाहता है। इस तरह की सिक्योरिटी साइबर लॉ विशेषज्ञ के जिम्मे होता है। आज भी ज्यादातर लोग ऐसे हैं, जो यह नहीं समझ पाते कि कैसे उनके ई-मेल में किसी अज्ञात व्यक्ति ने सेंध लगाई या कैसे कम्प्यूटर से उनका जरूरी डाटा पल भर में गायब हो गया। यही कारण है कि भारत में साइबर लॉ का विस्तार सभी क्षेत्रों में हो रहा है।

प्रो. केशव राय

डायरेक्टर, इंटरनेशनल स्कूल ऑफ कॉर्पोरेट मैनेजमेंट, पुणे

मेडिसिन इंडस्ट्री मैनेजर भी होते हैं यहां

मेडिसिन इंडस्ट्री आज दुनिया की सबसे तेजी से बढते उद्योगों में से एक है। यही कारण है कि इसमें दवाओं के वितरण, मार्केटिंग, पब्लिक रिलेशंस, फार्मा मैनेजमेंट आदि में स्किल्ड लोगों की मांग में काफी तेजी आ गई है।

कोर्स और योग्यता

देश में 100 से अधिक संस्थानों में फॉर्मेसी में डिग्री कोर्स और 200 से अधिक संस्थानों में डिप्लोमा कोर्स चलाए जा रहे हैं। इसमें बारहवीं के बाद सीधे डिप्लोमा किया जा सकता है। फार्मा रिसर्च में स्पेशलाइजेशन के लिए एनआईपीईआर यानी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मा एजुकेशन ऐंड रिसर्च जैसे संस्थानों में प्रवेश ले सकते हैं। दिल्ली स्थित एपिक इंस्टीट्यूट द्वारा फार्मास्युटिकल मैनेजमेंट में तीन वर्षीय डुएल अवॉर्ड प्रोग्राम चलाया जा रहा है। इसमें बीएससी (केमिस्ट्री या बायोलॉजी के साथ), बीफार्मा या डीफार्मा कर चुके अभ्यर्थी प्रवेश के पात्र हैं। इस कोर्स के तहत पहले वर्ष पीडीपीएम यानी प्रोफेशनल डिप्लोमा इन फार्मास्युटिकल मैनेजमेंट की उपाधि दी जाती है, जबकि दूसरे व तीसरे वर्ष एमबीए-फार्मा मैनेजमेंट की डिग्री दी जाती है। खास बात यह है कि पहले वर्ष के बाद जॉब के साथ-साथ भी कोर्स पूरा किया जा सकता है। कुछ विश्वविद्यालयों द्वारा फार्मा मैनेजमेंट में दो वर्षीय एमबीए पाठ्यक्रमों की शुरुआत की गई है, जिसमें प्रवेश के लिए स्नातक होना जरूरी है। जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली में मार्केटिंग में विशेषज्ञता के साथ एमफार्मा कोर्स भी उपलब्ध है। कुछ जगहों पर बीबीए (फार्मा मैनेजमेंट) कोर्स भी चलाया जा रहा है। यह तीन वर्षीय स्नातक कोर्स है, जिसमें छात्र 10+2 के बाद प्रवेश ले सकते हैं। इसके साथ-साथ पीजी डिप्लोमा इन फार्मास्युटिकल एवं हेल्थ केयर मार्केटिंग, डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग, एडवांस डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग एवं पीजी डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग जैसे कोर्स भी संचालित किए जा रहे हैं। इन पाठ्यक्रमों की अवधि छह माह से एक वर्ष के बीच है। इनके लिए अभ्यर्थी की न्यूनतम योग्यता बीएससी, बीफार्मा अथवा डीफार्मा निर्धारित की गई है।

खासियत फार्मा मैनेजमेंट की

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मा मार्केटिंग, लखनऊ के निदेशक पी. ऋषि मोहन कहते हैं कि सामान्य उत्पादों की मार्केटिंग के लिए जहां सीधे डीलर या कस्टमर से संपर्क करना होता है, वहीं दवाओं की मार्केटिंग में डॉक्टर अहम कडी होता है। दवा की खूबियों के बारे में डाक्टरों को संतुष्ट करना जरूरी होता है, तभी वे इसे मरीजों के प्रिस्क्रिप्शन में लिखते हैं। इसके अलावा दुकानों में दवा की उपलब्धता का पता भी रखना होता है। इन्हीं जरूरतों को देखते हुए फार्मा मैनेजमेंट कोर्स की शुरुआत की गई है। फार्मा मैनेजमेंट के क्षेत्र में काम करने के लिए मैनेजमेंट के साथ दवा निर्माण में इस्तेमाल होने वाले पदार्थों एवं तकनीक का भी ज्ञान होना चाहिए। दवा कंपनियां मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव, मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव अथवा मार्केटिंग ऑफिसर के रूप में प्रशिक्षित लोगों को ही रखना चाहती हैं।

विषय की प्रकृति

फार्मा मैनेजमेंट पाठ्यक्रम के अंतर्गत फार्मा सेलिंग, मेडिकल डिवाइस मार्केटिंग, फार्मा ड्यूरेशन मैनेजमेंट, फार्मा मार्केटिंग कम्युनिकेशन, क्वालिटी कंट्रोल मैनेजमेंट, ड्रग स्टोर मैनेजमेंट, फर्मास्युटिक्स, एनाटॉमी एवं मनोविज्ञान, प्रोडक्शन प्लानिंग, फार्माकोलॉजी इत्यादि विषय पढाए जाते हैं। इन तकनीकी विषयों के अलावा ड्रग डेवलपमेंट और कम्प्यूटर की व्यावहारिक जानकारी भी दी जाती है।

पद

आने वाले समय में इस क्षेत्र में योग्य एवं प्रशिक्षित मेधावी युवाओं की मांग बढेगी और रोजगार के भी अवसर बढेंगे, जिसमें मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव, प्रोडक्ट्स एग्जीक्यूटिव, बिजनेस ऑफिसर अथवा बिजनेस एग्जीक्यूटिव, मार्केटिंग रिसर्च एग्जीक्यूटिव, ब्रांड एग्जीक्यूटिव, प्रोडक्शन एग्जीक्यूटिव, प्रोड्क्शन केमिस्ट, क्वालिटी कंट्रोल और क्वालिटी एश्योरेन्स एग्जीक्यूटिव पद शामिल हैं।

जॉब संभावनाएं

इंडस्ट्री के विशेषज्ञों का मानना है कि इस समय भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग 42 हजार करोड रुपये से अधिक का है, जिसमें निर्यात भी शामिल है। वर्ष 2005 में देश की फार्मा इंडस्ट्री का कुल प्रोडक्शन करीब 8 बिलियन डॉलर था, जिसके वर्ष 2010 तक 25 बिलियन डॉलर हो जाने की उम्मीद है। भारत में इस समय 23 हजार से भी अधिक रजिस्टर्ड फार्मास्युटिकल कंपनियां हैं, हालांकि इनमें से करीब 300 ही ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर में हैं। एक अनुमान के अनुसार, इस इंडस्ट्री में तकरीबन दो लाख लोगों को काम मिला हुआ है। फार्मा इंडस्ट्री की वर्तमान प्रगति को देखते हुए अगले कुछ वर्षों में इस इंडस्ट्री को दो से तीन गुना स्किल्ड लोगों की जरूरत होगी। आर ऐंड डी (शोध व विकास) पर वर्ष 2000 में जहां महज 320 करोड रुपये खर्च किए गए, वहीं 2005 में यह बढकर 1500 करोड रुपये तक पहुंच गया। इस संबंध में इंडियन फार्मास्युटिकल एसोसिएशन के सेक्रेटरी जनरल दिलीप शाह का कहना है कि भारी मात्रा में निवेश को देखते हुए स्वाभाविक रूप से फार्मा रिसर्च के लिए प्रति वर्ष एक हजार और साइंटिस्टों की जरूरत होगी। दिल्ली स्थित एपिक इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ केयर स्टडीज के डायरेक्टर दीपक कुंवर का कहना है कि यह क्षेत्र आज सर्वाधिक संभावनाओं से भरा है। इसमें दक्ष युवा देशी-विदेशी कंपनियों में कई तरह के आकर्षक काम आसानी से पा सकते हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मा मार्केटिंग, लखनऊ के प्रोफेसर ऋषि मोहन का कहना है कि इस क्षेत्र में प्लेसमेंट की स्थिति बहुत अच्छी है।

कमाई

प्रशिक्षित लोगों की मांग देखते हुए इस क्षेत्र में सैलरी भी काफी तेजी से बढ रही है। रिसर्च और एंट्री लेवल पर सैलरी डेढ लाख रुपये वार्षिक मिलती है। मार्केटिंग क्षेत्र में एक फ्रेशर को तीन-साढे तीन लाख रुपये वार्षिक मिल जाते हैं। दीपक कुंवर बताते हैं कि उनके यहां के स्टूडेंट्स को शुरुआती मासिक वेतन 8 से 15 हजार रुपये तक आसानी से मिल जाता है।

प्रमुख संस्थान

एपिक इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ केयर स्टडीज, डी-62 , साउथ एक्सटेंशन, पार्ट-1, नई दिल्ली-49, फोन 011-24649994

वेबसाइट : www.apicworld.com

ग्लोबल ग्रुप ऑफ इंस्टीटयूशन, पंजाब

वेबसाइट : www.gkfindia.com

इंस्टीटयूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन ऐंड रिसर्च, पुणे

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन, मोहाली, चंडीगढ-62

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मा मार्केटिंग, विकास नगर, लखनऊ

एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट ऐंड रिसर्च, मुंशी नगर, दादाभाई रोड, अंधेरी वेस्ट मुंबई,

ई-मेल : spjicom@spjimr-ernet-in

नरसी मुंजे इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज जेवीपीडी स्कीम, विले पार्ले, मुंबई-56

ई-मेल enquiry@nmims-edu

जवाहर लाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च, बेंगलुरू,

वेबसाइट www-jncasr-ac-in

(विशेषज्ञों से बातचीत पर आधारित)

फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री पर एक नजर

फार्मा बिजनेस या दवा व्यवसाय आज विश्व के चौथे बडे उद्योगों में से एक है।

विश्व व्यापार का 8 प्रतिशत हिस्सा इस उद्योग के अंतर्गत आता है।

भारत का घरेलू फार्मास्युटिकल उद्योग 42 हजार करोड रुपये से अधिक का है।

इसमें 8-10 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि हो रही है।

वर्ष 2010 तक इसके 25 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

फाइनेंस की दुनिया

ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में न सिर्फ भारतीय अर्थव्यवस्था में अभूतपूर्व बदलाव आया है, बल्कि इसने भारतीय कॉर्पोरेट सेक्टर को भी नई दिशा प्रदान की है। जाहिर है, इससे कॉर्पोरेट सेक्टर में नई-नई नौकरियां सामने आ रही हैं। अगर आप भी कॉर्पोरेट सेक्टर में अपने करियर को नया आयाम देना चाहते हैं, तो फाइनेंशियल एक्सपर्ट के रूप में करियर का आगाज कर सकते हैं।

कोर्स

इसमें डिप्लोमा कोर्सेज के अलावा मास्टर डिग्री के कोर्स भी उपलब्ध हैं। फाइनेंस से संबंधित कोर्स में फाइनेंशियल अकाउंटिंग और इकोनॉमिक्स पर खास जोर दिया जाता है। यह कोर्स चार्टर्ड अकाउंटेंट, कॉस्ट अकाउंटेंट, सीएस और एमबीए प्रोफेशनल्स में काफी लोकप्रिय है।

योग्यता

कॉमर्स बैकग्राउंड के स्टूडेंट्स के लिए यह सबसे पसंदीदा क्षेत्र है। लेकिन अन्य स्ट्रीम के स्टूडेंट्स भी इसमें करियर बना सकते हैं। इसमें प्रवेश पाने के लिए न्यूनतम योग्यता किसी भी संकाय में 50 प्रतिशत अंकों के साथ 12वीं पास जरूरी है। एडमिशन के लिए मेरिट या एंट्रेंस टेस्ट होता है।

कार्य

फाइनेंशियल सर्विस से जुडे प्रोफेशनल्स का मुख्य कार्य ऑर्गनाइजेशन के लिए मनी क्रिएट करना, कैश जनरेट करना और किसी भी इन्वेस्टमेंट पर अधिक से अधिक रिटर्न प्रदान करना होता है। इसके साथ ही, फाइनेंशियल प्लॉनिंग में भी इनका अहम योगदान होता है। फाइनेंस से जुडे लोगों को किसी भी कंपनी के संपूर्ण वित्तीय प्रबंधन को समझना होता है और शीर्ष प्रबंधकों को वित्तीय और आíथक नीति बनाने और उन्हें लागू करने में मदद करना होता है। इसके अलावा क्रेडिट कार्ड आपरेशंस का भी क्षेत्र है, जहां फाइनेंस के जानकारों का भरपूर इस्तेमाल होता है।

संभावनाएं

इंटरनेशनल कंसल्टिंग फर्म सेलेंट के मुताबिक, इंडियन वेल्थ मैनेजमेंट सर्विस का मार्केट वर्ष 2007 में 1.3 करोड के करीब था, जिसके वर्ष 2012 तक बढकर 4.2 करोड तक पहुंच जाने की उम्मीद है। परफॉर्मेस के लिहाज से भारत दुनिया का तीसरा सबसे बडा मार्केट के रूप में उभरा है। अर्नेस्ट यंग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत आईपीओ के मामले में दुनिया का पांचवां सबसे बडा देश है। भारत म्यूचुअल फंड के क्षेत्र में सबसे तेजी से विकास कर रहा है और आने वाले तीन वर्षो में यह सेक्टर 30 प्रतिशत की दर से बढ सकता है। यह मार्केट जुलाई 2007 में 118.85 अरब डॉलर के करीब था, जिसके वर्ष 2010 तक 241.79 अरब डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। इंडियन बैंकिंग सेक्टर की विकास दर 20 प्रतिशत के करीब है। इतना ही नहीं, एशिया के टॉप 50 बैंक में नौ भारतीय बैंक शामिल हैं। वहीं फो‌र्ब्स के टॉप 50 माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूट में भारत के सात इंस्टीट्यूट शामिल हैं। ग्लोबल कंसल्टिंग फर्म केएमपीजी के मुताबिक, इंडियन फाइनेंशियल केपीओ (नॉलेज प्रॉसेस आउटसोर्सिग) इंडस्ट्री का रेवेन्यू वर्ष 2010 तक पांच अरब डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। इस रिपोर्ट में यह बात भी कही गई है कि फाइनेंशियल आउटसोर्सिग सर्विस बढने की वजह टैलॅन्टेड प्रोफेशनल्स की उपलब्धता, ऑफशोर लोकेशन और बेहतर ऑउटसोर्सिग स्ट्रेटेजी आदि है।

नौकरी

फाइनेंस में योग्यता प्राप्त प्रोफेशनल्स को कॉर्पोरेट फाइनेंस, इंटरनेशनल फाइनेंस, मर्चेंट बैंकिंग, फाइनेंशियल सíवसेज, कैपिटल ऐंड मनी मार्केट, पोर्टफोलियो मैनेजमेंट, स्टॉक ब्रोकिंग, शेयर, रजिस्ट्री, क्रेडिट रेटिंग आदि में नौकरी मिल सकती है। सरकारी बैंकों के अलावा, निजी और विदेशी बैंकों की बढती आर्थिक गतिविधियों की वजह से फाइनेंशियल एक्सपर्ट,फाइनेंशियल नालिस्ट, फाइनेंशियल प्लानर, वेल्थ मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स आदि की डिमांड तेजी से बढी है। प्राइवेट बैंकों की बात करें, तो एचडीएफसी, आईसीआईसीआई, विदेशी बैंक जैसे-एबीएन मरो, सिटीगोल्ड वेल्थ मैनेजमेंट, सिटी बैंक, डच बैंक, एचएसबीसी आदि में भरपूर अवसर हैं। इसके अलावा, इंवेस्टमेंट फर्म जैसे-डीएसपी मैरील लाइंच, कोटक सिक्योरिटीज, आनंद राठी इंवेस्टमेंट और जे.एम मार्गन स्टेंली में भी रोजगार के अवसर तलाश सकते हैं। इसके अलावा प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से भी आप नौकरी पा सकते हैं।

वेतन

इस क्षेत्र में आने के बाद पैसे की कमी नहीं है। जहां तक वेतन का प्रश्न है, तो वह योग्यता, अनुभव, संस्थान के आकार और प्रकार पर निर्भर करता है।

संस्थान

डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल स्टडीज, दिल्ली विश्वविद्यालय, साउथ कैंपस, नई दिल्ली-21

कॉलेज ऑॅफ बिजनेस स्टडीज,दिल्ली विश्वविद्यालय,विवेक विहार, फेज-2, दिल्ली-95

द इंस्टीट्यूट ऑॅफ कम्प्यूटर अकाउंट्स, प्लॉट नं- 31, इंद्रदीप बिल्डिंग, कम्यूनिटी सेंटर, नियर अशोक विहार क्रॉसिंग, दिल्ली-52

आई-360, स्टाफिंग ऐंड ट्रेनिंग सॉल्यूशंस प्रा. लि. ए-1-171, दूसरा तल, नजफगढ रोड, जनकपुरी, नई दिल्ली-58

बीएलबी इंस्टीटयूट ऑफ फाइनेंशियल मार्केट चौथी मंजिल, गुलाब भवन, 6, बहादुरशाह जफर मार्ग, नई दिल्ली-2

अलीगढ मुस्लिम यूनिवíसटी फैकल्टी ऑफ कामर्स,अलीगढ

द इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड फाइनेंशियल एनालिस्ट ऑफ इंडिया, 52 नागार्जुन हिल्स, हैदराबाद इसके अलावा इस इंस्टीट्यूट की शाखाएं लखनऊ, कोलकाता, चैन्नई और पुणे में भी हैं।

देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, फैकल्टी ऑफ कॉमर्स, नालंदा परिसर, 169, रविन्द्रनाथ टैगोर मार्ग, इंदौर

कुरुक्षेत्र यूनिवíसटी,फैकल्टी ऑफ कामर्स ऐंड बिजनेस स्टडीज, कुरुक्षेत्र

यूनिवíसटी ऑफ लखनऊ,फैकल्टी ऑफ कॉमर्स, बादशाह बाग, लखनऊ

महíष दयानंद यूनिवíसटी,फैकल्टी ऑफ कॉमर्स ऐंड बिजनेस मैनेजमेंट रोहतक

उत्कल यूनिवíसटी,फैकल्टी ऑफ कॉमर्स, वाणी विहार, भुवनेश्वर

फजले गुफरान

मंदी के बावजूद इसमें काफी अवसर हैं। वित्त क्षेत्र में किसी भी तरह की विशेषज्ञता रखने वालों के लिए नौकरियों की कमी नहीं है।

बेहतर संभावनाएं फाइनेंस में

फाइनेंशियल सíवसेज में करियर बनाने वालों की संख्या क्यों बढती जा रही है?

हर क्षेत्र में कुछ चुनौतियां होती हैं, तो संभावनाएं भी। मंदी के बावजूद इस सेक्टर में काफी संभावनाएं हैं। यह सेक्टर काफी बडा है। वित्त क्षेत्र में किसी भी तरह की विशेषज्ञता रखने वालों के लिए नौकरियों की कमी नहीं है। बैंकिंग, इंश्योरेंस सेक्टर, मार्केटिंग, सार्वजनिक सेक्टर, निजी व गैर सरकारी संस्थाओं के अलावा भी कई जगह इनका प्लेसमेंट हो रहा है।

फाइनेंशियल सíवसेज में करियर बनाने वालों के लिए क्या यह उपयुक्त समय है?

बिल्कुल, इस सेक्टर में करियर बनाने वालों के लिए यह बेहद उपयुक्त समय है। व‌र्ल्डवाइड ग्रोथ हो रही है। हिन्दुस्तान में ही 51 से 52 फीसदी रोजगार के अवसर हैं। कमोडिटी मार्केट का विस्तार हो रहा है। बैंकिंग सेक्टर में सुधार हो रहा है। बीमा क्षेत्र भी भविष्य का निर्माण तय करने में जुटा है। यानी इन सभी क्षेत्रों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लाखों लोगों को रोजगार मिलने का अनुमान है।

लेकिन मंदी का सबसे व्यापक असर तो फाइनेंशियल सेक्टर पर ही पडा है?

यह सब क्षणभंगुर है। जल्द ही बादल छंट जाएंगे। यह सेक्टर इतना बडा है कि इसकी महत्ता कभी कम नहीं हो सकती है। जल्द ही देश की इकोनॉमी में तेजी आएगी और नए क्षेत्रों में रोजगार के अवसर खुलेंगे। फाइनेंशियल सíवसेज में करियर बनाने वालों को क्या सलाह देना चाहेंगे?

यहां औसत से लेकर प्रतिभावान, दोनों तरह के स्टूडेंट्स के लिए करियर संवारने का मौका है। इस सेक्टर से पढाई करने वाले कहीं भी एडजस्ट हो सकते हैं, जबकि दूसरे विषय के छात्रों के साथ ऐसा नहीं हैं। यूं तो 12 वीं के बाद ही करियर की राह खुल जाती है, लेकिन डिग्री या पीजी हैं, तो आपके लिए बेहतर अवसर हो सकते हैं।

(डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल स्टडीज, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. संजय सहगल से बातचीत)

चलें गांव की ओर

विकास का पहिया अब ग्रामीण इलाकों से होकर गुजरेगा, क्योंकि इस बार के बजट में सरकार ने ग्रामीण रोजगार स्कीम के तहत 39,000 करोड रुपये की घोषणा की है। इसका मतलब यह हुआ कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, भारत निर्माण, इंदिरा आवास आदि जैसी योजनाओं पर सरकार के खर्च में काफी बढोतरी होगी। ऐसी स्थिति में रूरल मैनेजमेंट से जुडे पेशेवरों की डिमांड में काफी इजाफा होने की उम्मीद है।

क्वालिफिकेशन ऐंड कोर्स

अधिकतर मैनेजमेंट इंस्टीटयूट्स रूरल मैनेजमेंट में पीजी डिप्लोमा या एमबीए कोर्स ऑफर करती हैं। इस कोर्स में एंट्री के लिए किसी भी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी से स्नातक होना जरूरी है।

एडमिशन प्रॉसेस

आमतौर पर इसके लिए संबंधित संस्थान प्रवेश परीक्षा लेता है। एंट्रेस एग्जाम के बाद ग्रुप डिस्कशन और पर्सनल इंटरव्यू के दौर से गुजरना पडता है। जानते हैं कुछ इंस्टीटयूट में कैसे होता है एडमिशन..

इंस्टीटयूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आनंद : रूरल मैनेजमेंट में दो वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में एडमिशन के लिए लिखित परीक्षा में बैठना होगा। इसमें चार सेक्शन होते हैं- इंग्लिश कॉम्प्रिहेन्शन, क्वांटिटेटिव एबिलिटी, रीजनिंग और एनालिटिकल स्किल।

जेवियर इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट, भुवनेश्वर : रूरल मैनेजमेंट के पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम में एंट्री के लिए आईआरएमए/एक्सएटी टेस्ट स्कोर, जीडी और इंटरव्यू के आधार पर होती है। स्नातक की डिग्री रखने वाले स्टूडेंट्स इस टेस्ट में हिस्सा ले सकते हैं।

इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, जयपुर : इस इंस्टीटयूट में एडमिशन के लिए मैट, एक्सएटी आदि स्कोर जरूरी है। स्टूडेंट्स का फाइनल सेलेक्शन ऊपर दिए गए स्कोर के अलावा जीडी, पर्सनल इंटरव्यू और एकेडमिक रिकॉर्ड के आधार पर होता है।

क्यों लें इस कोर्स में एडमिशन?

आज देश की गरीबी को खत्म करना सरकार की प्राथमिकता में शामिल है। यही वजह है कि ग्रामीण इलाकों के विकास के लिए मिनिस्ट्री ऑफ रूरल डेवलपमेंट ने कई योजनाओं की शुरुआत की हैं, जैसे-राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, भारत निर्माण, इंदिरा आवास, ग्रामीण सडक योजना आदि। ये तो हुई योजनाओं की बात। यदि प्लेसमेंट की बात करें, तो मंदी के बावजूद भी रूरल मैनेजमेंट में पेशेवरों की मांग बढी हैं। जेवियर इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट, भुवनेश्वर के रूरल मैनेजमेंट के 59 स्टूडेंट्स का प्लेसमेंट अमूल, टाटा टेलीसर्विस, मदर डेयरी आदि जैसी कंपनियों में हुई है। इसमें सबसे ज्यादा वार्षिक सैलरी पैकेज 8 लाख रुपये का रहा है। इसी तरह कुछ अन्य रूरल मैनेजमेंट इंस्टीटयूट्स में भी अच्छी प्लेसमेंट देखी गई हैं। इस क्षेत्र में मौजूद संभावनाओं को देखते हुए एडमिशन लेना करियर की दृष्टि से बेहतर माना जा सकता है।

जॉब प्रोफाइल

रूरल मैनेजर का काम ग्रामीण इलाकों में रहने वालों के विकास में सहायता करना होता है, ताकि देश का भी समग्र विकास हो सके। आज पूरी दुनिया में रूरल डेवलपमेंट पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है और विकास के लिए कई सारी स्कीम की शुरुआत हो रही है। इन योजनाओं में राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, एनजीओ और स्थानीय निकाय भी शामिल होते हैं। रूरल मैनेजमेंट से जुडे पेशेवर का काम रूरल एरिया में कंपनी की तरक्की और लाभ के ग्राफ को ऊपर ले जाने का भी होता है। साथ ही, फर्म के प्रबंधन, रखरखाव आदि भी इन्हीं के जिम्मे होता है। यदि आपका प्लेसमेंट किसी रूरल कंसल्टेंसी कंपनी में हुआ है, तो प्लानिंग, बजट, मार्केट, निरीक्षण, यहां तक कि एम्प्लॉइज को बहाल करने का कार्य भी करना पड सकता है।

आ अब लौट चलें..

पहले लोग नौकरी की तलाश के लिए गांवों से शहरों की ओर पलायन करते थे, लेकिन अब स्थिति बदलती हुई नजर आ रही हैं, क्योंकि ग्रामीण इलाकों में विकास के कार्यो को देखते हुए लोग अब कहने लगे हैं आ अब लौट चलें..। यदि आपके पास रूरल मैनेजमेंट की डिग्री है, तो आपके लिए नौकरी की कमी नहीं है। आप एनजीओ, गवर्नमेंट डेवलपमेंट एजेंसी, को-ऑपरेटिव बैंक, इंश्योरेंस कंपनी, रिटेल कंपनी (फ्यूचर ग्रुप, रिलायंस, गोदरेज एग्रोवेट, भारती, आरपीजी) मल्टीनेशनल कंपनी या रूरल कंसल्टेंसी (आईटीसी ई-चौपाल, एससीएस ग्रुप, ग्रोसमैन ऐंड असोसिएट्स) और रिसर्च एजेंसी भी ज्वाइन कर सकते हैं। कुछ एनजीओ, जो रूरल मैनेजमेंट ग्रेजुएट्स को हायर करते हैं- ऐक्शन फॉर रूरल डेवलॅपमेंट, असोसिएशन फॉर वॉलन्टरी एजेंसीज फॉर रूरल डेवलपमेंट, आगा खान रूरल सपोर्ट प्रोग्राम, बीएआईएफ, चिराग, डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स ऐंड इकोटेक सर्विस, इंटरनेशनल एनजीओ, गवर्नमेंट डेवलपमेंट एजेंसीज जैसे-डीआरडीए और एसआईआरडी, एकेडमिक ऐंड रिसर्च इंस्टीटयूट आदि में नौकरी की तलाश कर सकते हैं।

मनी टॉक

देश के टॉप मैनेजमेंट इंस्टीटयूट के स्टूडेंट्स की सैलरी उनके बैकग्राउंड पर भी निर्भर करती है। आमतौर पर रूरल मैनेजमेंट स्टूडेंट्स को शुरुआती दौर में चार से पांच लाख रुपये का सालाना सैलॅरी पैकेज मिल जाता है।

इंस्टीट्यूट वॉच

इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली

www.ignou.ac.in

एमिटी स्कूल ऑफ रूरल मैनेजमेंट, नोएडा

www.amity.edu

नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी, गाजियाबाद, यूपी,

www.imt.edu

इंस्टीटयूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आनंद, गुजरात

www. irma.ac.in

रूरल रिसर्च फाउंडेशन,जयपुर, राजस्थान

www.morarkango.com

इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट, कोलकाता,

www.iimcal.ac.in

नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट, हैदराबाद ,

www.nird.org.in

जेवियर इंस्टीटयूट ऑफ सोशल सर्विस, रांची, झारखंड,

www.xiss.ac.in

जेवियर इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट, भुवनेश्वर

www.ximb.ac.in

केआईआईटी स्कूल ऑफ रूरल मैनेजमेंट, भुवनेश्वर, उडीसा

www.ksrm.ac.in

amitnidhi@nda.jagran.com

अमित निधि

विकास की बयार

रूलर एरिया में करियर की क्या संभावनाएं हैं, इस पर हमने बात की एमिटी स्कूल ऑफ रूरल मैनेजमेंट के डायरेक्टर डॉ.पी.सी. सभरवाल से..

रूरल मैनेजमेंट क्यों जरूरी है?

भारत का 70 प्रतिशत एरिया रूरल के अंतर्गत आता है और हमारी इकोनॉमी भी कृषि आधारित है। ऐसे में रूरल मैनेजमेंट के तहत ग्रामीण इलाकों में विकास के कार्य को गति देना होता है, ताकि लोगों का पलायन ग्रामीण इलाकों से रुक सके। यही कारण है कि अर्बन एरिया में विकास कार्यो के बाद अब रूरल एरिया पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।

यह कोर्स कितना पॉपुलर है?

इस कोर्स के प्रति स्टूडेंट्स को अधिक जानकारी नहीं है, लेकिन इस वर्ष के प्लेसमेंट रिकार्ड को देखें, तो रूरल मैनेजमेंट कोर्स में काफी संभावनाएं हैं। सरकार की योजनाओं से इस क्षेत्र की महत्ता और बढ गई है। आने वाले दिनों में यह हॉट कोर्स होगा।

सरकार ने बजट में रूरल डेवलपमेंट पर अधिक ध्यान दिया है। क्या इससे रोजगार में इजाफा होगा?

बिल्कुल, आज भारत ही नहीं, बल्कि अन्य देशों का फोकस ग्रामीण इलाकों पर अधिक है। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले वर्षो में ग्रामीण विकास से ही देश की अर्थव्यवस्था का पहिया घूमेगा। कॉर्पाेरेट जगत, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय संस्था आदि अब ग्रामीण विकास की राह पर अग्रसर हैं। जहां तक सरकार की बात है, तो इनकी कई स्कीम हैं, जिससे रोजगार की संभावनाएं इस क्षेत्र में दिन-ब-दिन बढेंगी ही। इससे अलावा, कृषि विकास, कृषि उपकरण, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। मेरा मानना है कि रूरल इकोनॉमी मजबूत होगी, तो देश भी तरक्की करेगा।

होटल इंडस्ट्री सेवा में मेव

होटल इंडस्ट्री का सीधा रिश्ता पर्यटन से है और हर देश पर्यटन को बढावा दे रहा है। इसीलिए होटल इंडस्ट्री भी तेजी से बढ रही है। आने वाले समय में राष्ट्रमंडल खेल और क्रिकेट विश्वकप होने से इस इंडस्ट्री को काफी लाभ होने की संभावना है।

कैसे करें शुरुआत

होटल इंडस्ट्री में प्रवेश के रास्ते बारहवीं के बाद खुल जाते हैं। किसी भी संकाय से बारहवीं पास स्टूडेंटस होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा या डिग्री हासिल कर सकते हैं, लेकिन अगर आप ग्रेजुएशन के बाद होटल व्यवसाय में करियर बनाना चाहते हें, तो एमएससी इन होटल मैनेजमेंट और पीजी डिप्लोमा इन होटल मैनेजमेंट की डिग्री हासिल कर करियर को ऊंचाई दे सकते हैं। इसके लिए एंट्रेस टेस्ट से गुजरना पडेगा। अधिकतर संस्थान ऑल इंडिया एडमिशन टेस्ट और इंटरव्यू द्वारा स्टूडेंट्स का चयन करते हैं।

कोर्स

होटल मैनेजमेंट में दो तरह के पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। बारहवीं के बाद बीए इन होटल मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन होटल मैनेजमेंट, बैचलर डिग्री इन होटल मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन होटल ऐंड कैटरिंग मैनेजमेंट, बैचलर डिग्री इन हास्पिटैलिटी साइंस, बीएससी इन होटल मैनेजमेंट ऐंड कैटरिंग साइंस। इन कोर्सेज की अवधि 6 महीने से लेकर 3 साल तक है। कुछ कॉलेजों से आप पीजी डिप्लोमा इन होटल मैनेजमेंट, एमएससी इन होटल मैनेजमेंट और एमए इन होटल मैनेजमेंट कर सकते हैं। इसकी अवधि है 2 साल। नई दिल्ली, मुबंई और बेंगलुरु स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट कैटरिंग टेक्नोलॉजी एवं अप्लाइड न्यूट्रीशन संस्थान में विभिन्न स्पेशलाइज्ड कोर्सेज भी हैं। इन कोर्सेज की अवधि छह महीने से एक साल के बीच होती है। इन कोर्सेज के नाम हैं-फूड प्रोडक्शन मैनेजमेंट, डाएटिक्स ऐंड न्यूट्रीशन, हाउस कीपिंग, फ्रंट ऑफिस ऐंड टूरिज्म मैनेजमेंट आदि। एलबीआईआईएचएम के डायरेक्टर कमल कुमार के मुताबिक पहले लोग सीढी दर सीढी प्रोमोशन पाते थे। शुरुआत अपरेंटिसशिप और कैटरिंग से होती थी, लेकिन अब एमएससी इन होटल मैनेजमेंट कोर्स करके डायरेक्ट मैनेजर तक बन सकते हैं।

वेतन

सीएचएमएस की प्रिंसिपल श्रीमती कृति रंजन सिंह कहती हैं कि होटल मैनेजमेंट की काफी मांग है। यही वजह है कि सबसे बेहतरीन प्रोफेशनल कोर्स में शुमार होने लगा है। उनके मुताबिक सíटफिकेट कोर्स या डिप्लोमाधारी हैं, तो बतौर शुरुआती वेतन 10 हजार से 15 हजार रुपये जरूर मिलते हैं। अनुभव के बाद इससे भी अधिक पैसे मिलते हैं।

फीस

सरकारी संस्थानों में फीस कम है, लेकिन प्राइवेट संस्थानों से अगर होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा करना चाहते हैं, तो फीस 50 हजार से एक लाख रुपये तक देनी होगी, वहीं पोस्ट ग्रेजुएशन डिग्री के लिए डेढ से 2 लाख तक फीस है।

अवसर

एसोचैम की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2010 में होटल इंडस्ट्री सुनहरे दौर से गुजरेगी। इसकी वजह भी दिखती है, क्योंकि 2010 में राष्ट्रमंडल खेल एवं क्रिकेट व‌र्ल्डकप भारत में होना है। इन आयोजनों के दौरान लगभग एक करोड विदेशी पर्यटकों के भारत आने की संभावना है। ऐसे में उनके रहने के लिए अतिरिक्त होटलों की जरूरत होगी। होटल बनेंगे, तो वहां कर्मचारियों की जरूरत भी पडेगी। रिपोर्ट के अनुसार इस क्षेत्र में वर्ष 2010 तक 600 नए होटल खुलने की संभावना है।

प्रत्येक कॉलेज में एक प्लेसमेंट सेल होती है। कोर्स करने के बाद कुछ सरकारी और निजी क्षेत्रों में रोजगार ही रोजगार हैं। लेकिन कहां और किस जगह आप पहली नौकरी पाएंगे, यह छात्रों की क्षमता और इंस्टीट्यूट के स्तर पर निर्भर करेगा। यह कहना है ग्रेटर नोएडा स्थित एफएचआरएआई के डायरेक्टर डॉ. जगमोहन नेगी का। कोर्स करने के बाद छात्रों को पंचतारा होटल, रेस्टोरेंट, एयरलाइंस के फूड सíवस, हॅास्पिटल, आ‌र्म्ड फोर्सेज, कॉर्पोरेट कैंटीन, मॉल्स, मल्टीप्लेक्स, रेलवे, शिपिंग में तो रोजगार के अवसर हैं ही, फास्ट फूड क्षेत्रों में भी रोजगार मिल सकता है। खुद का व्यवसाय तो आप शुरू कर ही सकते हैं।

प्रमुख संस्थान

इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट, कैटरिंग टेक्नोलॉजी ऐंड अप्लायड न्यूट्रीशन, लाइब्रेरी एवेन्यू, पूसा, नई दिल्ली

दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट ऐंड कैटरिंग टेक्नोलॉजी, ओल्ड गार्गी बिल्डिंग, लेडी श्रीराम कॉलेज के पीछे, लाजपत नगर, नई दिल्ली

ओबराय सेंटर ऑफ लíनंग ऐंड डेवलपमेंट, शामनाथ मार्ग, नई दिल्ली- एफएचआरएआई प्लॉट नंबर-45, नालेज पार्क-3, ग्रेटर नोएडा

एलबीआईआईएचएम, बी-98, पुष्पांजलि एनक्लेव, पीतमपुरा, दिल्ली

सीएचएमएस ईको-71, उद्योग विहार, ग्रेटर नोएडा

ताज ग्रुप होटल्स, ट्रेनिंग मैनेजर, द ताज महल होटल, मानसिंह रोड, नई दिल्ली

हैरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ होटल ऐंड टूरिज्म, वैभव नगर, ताज नगरी, आगरा

अलीगढ मुस्लिम यूनिवíसटी डिपार्टमेंट ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन, फैकल्टी आफ कॉमर्स, अलीगढ, यूपी

इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट, कैटरिंग टेक्नोलॉजी ऐंड अप्लायड न्यूट्रीशन, सेक्टर-जी, अलीगंज, लखनऊ

इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट, उपाध्याय कंपलेक्स, कंकडबाग रोड, पटना

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ऐंड मैनेजमेंट, आईआईएस कॉम्पलेक्स, इंस्टीट्यूशनल एरिया, रांची (झारखंड)

इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट, कैटरिंग टेक्नोलॉजी ऐंड अप्लायड न्यूट्रीशन, नियर एकेडमी ऑफ भोपाल, मध्यप्रदेश

डॉ. अम्बेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट, सेक्टर-42 डी, चंडीगढ

यूनानी चिकित्सा कल भी, आज भी

आधुनिक युग में भी प्राचीन यूनानी चिकित्सा पद्धति का महत्व बरकरार है। इसलिए यूनानी चिकित्सकों की मांग दिन-ब-दिन बढती जा रही है।

क्या है यूनानी चिकित्सा

यह विश्व की सबसे पुरानी उपचार पद्धतियों में से एक है, जिसकी शुरुआत ग्रीस (यूनान) से हुई। इसीलिए इसे यूनानी पद्धति कहा जाता है। इस पद्धति के जनक ग्रीस के महान फिलॉसफर व फिजीशियन हिपोक्रेट्स थे। यूनानी पद्धति मुख्यत ह्यूमरल थ्योरी दम (ब्लड), बलगम, सफरा और सौदा पर बेस्ड है। भारत में यूनानी पद्धति अरब से आई और जल्द ही भारत में रच-बस गई। इसे भारत में लोकप्रिय बनाने का श्रेय हकीम अजमल खान को जाता है।

योग्यता एंव कोर्स

यूनानी डॉक्टर बनने के लिए 12वीं के बाद छात्र बीयूएमएस यानी बैचलर आफ यूनानी मेडिसिन ऐंड सर्जरी में एडमिशन ले सकते हैं। साढे पांच साल के इस कोर्स में वही छात्र दाखिला पा सकते हैं, जिनका अनिवार्य विषय के रुप में जीव विज्ञान और उर्दू रहा है। बीयूएमएस के बाद छात्र एमडी और एमएस भी कर सकते हैं। लेकिन एमएस यानी मास्टर ऑफ सर्जन की पढाई वर्तमान में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में ही है।

अवसर

बतौर शिक्षक हिंदुस्तान के प्रमुख शिक्षण संस्थानों में नियुक्त हो सकते हैं। हेल्थ सíवसेज, राज्य सरकार के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, हॉस्पिटल्स, नेशनल रूरल हेल्थ मिशन में बतौर मेडिकल ऑफिसर के तौर पर काम कर सकते हैं। बीयूएमस पासआउट को एमबीबीएस के समान दर्जा हासिल है। इसलिए खुद की प्रैक्टिस भी कर सकते हैं।

विशेषताएं

कई असाध्य रोगों का यूनानी में इलाज संभव है। मुख्य रूप से गठिया, सफेद दाग, एग्जिमा, आस्थमा, माइग्रेन, मलेरिया एंव फाइलेरिया। यूनानी चिकित्सा पद्धति में औषधियां जडी-बूटियों और खनिज पदार्थो से बनती हैं। बीमारियों की जांच नब्ज टटोलकर की जाती है।

प्रमुख संस्थान

जामिया हमदर्द, नई दिल्ली

आयुर्वेद यूनानी तिब्बी कॉलेज, करोलबाग, नई दिल्ली

गवर्नमेंट निजामी तिब्बी कॉलेज, चारमीनार, हैदराबाद, आंध्रप्रदेश

गवर्नमेंट तिब्बी कॉलेज, कदमकुआं, पटना

साफिया यूनानी मेडिकल कॉलेज, दरभंगा, बिहार

अजमल खान तिब्बी कॉलेज, अलीगढ, यूपी

जामिया तिब्बिया देवबंद, सहारनपुर, देवबंद, यूपी

स्टेट यूनानी मेडिकल कॉलेज इलाहाबाद, यूपी

तिब्बिया कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल, बैतुल अमन, मुंबई

तकमील उतिब कालेज ऐंड हॉस्पिटल,लखनऊ, उत्तरप्रदेश

फजले गुफरान

बेहतर प्लेसमेंट

कोर्स करने के बाद प्राय: सभी को नौकरी मिल जाती है।

बीयूएमएस में दाखिले की प्रक्रिया क्या है?

इसमें दाखिले के लिए छात्रों को प्री यूनिवíसटी टेस्ट (पीयूटी) से गुजरना पडता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के यूनानी कॉलेजों में दाखिला तभी मिलेगा, जब आप कंबाइंड प्री मेडिकल टेस्ट (सीपीएमटी) परीक्षा पास करेंगे। बारहवीं में अच्छे अंक प्राप्त छात्र ही इस परीक्षा में बैठ सकते हैं। साढे पांच साल के इस कोर्स में एक साल इंटर्नशिप कराया जाता है।

प्लेसमेंट कितना हो पाता है?

इसमें सरकार का पूरा-पूरा सहयोग है। साथ ही ऑल इंडिया यूनानी तिब्बी कांग्रेस (जो यूनानी डॉक्टरों का एक बडा आर्गेनाइजेशन है) छात्रों को बीयूएमएस की डिग्री हासिल होते ही रोजगार मुहैया कराने के लिए अग्रसर रहता है। इस कारण प्लेसमेंट संतोषजनक है।

कोई स्पेशलाइज्ड कोर्स भी यूनानी चिकित्सा पद्धति में है?

कोई स्पेशलाइज्ड कोर्स तो नहीं है, लेकिन जल्द ही यूनानी चिकित्सा पद्धति के तहत सíटफिकेट कोर्स की मांग चल रही है, ताकि जो छात्र साढे पांच साल का बीयूएमएस कोर्स नहीं कर सकते, वे सíटफिकेट कोर्स कर जल्द से जल्द रोजगार पा सकें।

(रीजनल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ यूनानी मेडिसिन, दिल्ली के रिसर्च ऑफिसर डॉ. सैयद अहमद खान से बातचीत पर आधारित)

कमाइए दुआ और दाम

प्राकृतिक और मानवीय आपदाओं में इनसान, जानवरों, प्राकृतिक व धन-संपत्ति का नुकसान समाज और जन-जीवन को झकझोर कर रख देता है। ऐसी विभीषिकाओं के शिकार बने लोगों की मदद करने, उन्हें उबारने और उनके जीवन को फिर से पटरी पर लाने में आपदा प्रबंधन से जुडे लोगों का बडा हाथ होता है। सरकार, एनजीओ, अनेक निजी संस्थान आपदा प्रबंधन को प्राथमिकता दे रहे हैं। यही कारण है कि इस क्षेत्र में प्रशिक्षित पेशेवरों की मांग तेजी से बढती जा रही है।

जरूरत क्यों?

भारत में बहुत से क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं के लिए अति संवेदनशील हैं। एक अनुमानित आंकडा बताता है कि पिछले बीस सालों में पूरे विश्व में जमीन खिसकने, भूकंप, बाढ, सुनामी, बर्फ की चट्टान सरकने और चक्रवात जैसी आपदाओं में लगभग तीस लाख से अधिक लोगों की जान चली गई। यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि विश्व भर में आईं प्राकृतिक आपदाओं में लगभग 90 प्रतिशत विकासशील देशों के हिस्से पडीं। देश की 70 प्रतिशत खेतिहर जमीन सूखे की आशंका की जद में है। वहीं कुल जमीन का 60 फीसदी हिस्सा भूकंप के प्रति संवेदनशील है, 12 प्रतिशत बाढ और 8 प्रतिशत चक्रवात के लिए।

क्या करते हैं पेशेवर ?

डिजास्टर मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स का मुख्य काम आपदा के शिकार लोगों की जान बचाना और उन्हें मुख्य धारा में फिर से वापस लाना होता है। इसके लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारें आवश्यक धन उपलब्ध कराती हैं। इन सबमें मुख्य सरकारी एजेंसी के रूप में गृह मंत्रालय बडी भूमिका निभाता है। वह आपदा के समय डिजास्टर मैनेजमेंट का कार्य संभालता है। कृषि एवं सहकारिता मंत्रालय सूखे और अकाल के वक्त अपनी जिम्मेदारियां निभाता है। वहीं, अन्य विपदाओं के लिए दूसरे मंत्रालय भी जिम्मेदार होते हैं, जैसे- हवाई दुर्घटनाओं के लिए सिविल एविएशन मिनिस्ट्री, रेल दुर्घटनाओं के लिए रेल मंत्रालय, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और परमाणु ऊर्जा मंत्रालय आदि भी विभिन्न प्रकार की विपदाओं के समय जिम्मेदारियां निभाते हैं। डिजास्टर मैनेजमेंट में प्रशिक्षित लोग आपदा के वक्त बहुमूल्य होते हैं। स्टूडेंट्स को आपातकालीन स्थितियों में प्रबंधन के बारे में तालीम दी जाती है।

पहल सरकार की

भारत सरकार ने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण पहल की। मानव संसाधन मंत्रालय ने दसवीं पंचवर्षीय परियोजना में डिजास्टर मैनेजमेंट को स्कूल और प्रोफेशनल एजुकेशन में शामिल किया था। वर्ष 2003 में पहली बार केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने आठवीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान विषय के पाठ्यक्रम में इसे जोडा। फिर आगे की कक्षाओं में और सरकारी व गैर सरकारी उच्च शैक्षणिक संस्थाओं में भी डिजास्टर मैनेजमेंट की पढाई होनी लगी।

कोर्स

देश के कई प्रबंधन संस्थान डिजास्टर मैनेजमेंट में सर्टिफिकेट से लेकर पीजी डिप्लोमा लेवल के कोर्स संचालित करते हैं। वहीं कई विश्वविद्यालय डिग्री लेवल कोर्स भी ऑफर कर रहे हैं। डिजास्टर मैनेजमेंट के कोर्स रेगुलर और डिस्टेंस लर्निग के माध्यम से भी कर सकते हैं।

योग्यता

सर्टिफिकेट कोर्स के लिए न्यूनतम योग्यता बारहवीं पास है, जबकि मास्टर डिग्री या पीजी डिप्लोमा के लिए न्यूनतम योग्यता स्नातक है। इस कोर्स में एडमिशन लेने वालों में हर परिस्थिति में काम करने का जज्बा जरूर होना चाहिए। कुछ संस्थान प्रोफेशनल के लिए भी सर्टिफिकेट कोर्स चलाते हैं।

पाठ्यक्रम

डिजास्टर मैनेजमेंट के तहत रिस्क असेसमेंट ऐंड प्रिवेंटिव स्ट्रैटेजीज, लेजिस्लेटिव स्ट्रक्चर्स फॉर कंट्रोल ऑफ डिजास्टर मिटिगेशन, ऐप्लिकेशन ऑफ जीआईएस इन डिजास्टर मैनेजमेंट, रेस्क्यू आदि विषय आते हैं। इसमें विभिन्न क्षेत्रों में स्पेशलाइजेशन भी किया जा सकता है, जैसे- माइनिंग, केमिकल डिजास्टर और टेक्निकल डिजास्टर वगैरह।

करियर की संभावनाएं

डिजास्टर मैनेजमेंट के क्षेत्र में आम तौर पर सरकारी नौकरियों में, आपातकालीन सेवाओं में, लॉ इन्फोर्समेंट, लोकल अथॉरिटीज, रिलीफ एजेंसीज, गैर सरकारी प्रतिष्ठानों और यूनाइटेड नेशन जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों में नौकरी मिल सकती है।

प्राइवेट सेक्टर में भी आपको जॉब मिल सकती है, जैसे केमिकल, माइनिंग, पेट्रोलियम जैसी रिस्क इंडस्ट्रीज में। आम तौर पर इन इंडस्ट्रीज में डिजास्टर मैनेजमेंट सेल होता है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं रेडक्रॉस और यूएन प्रतिष्ठान भी प्रशिक्षित पेशेवर को काम पर रखते हैं। अनुभव हासिल करने के बादखुद की कंपनी या फिर एजेंसी भी खोली जा सकती है।

इंस्टीट्यूट वॉच

इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (इग्नू), नई दिल्ली

नॉर्थ बंगाल यूनिवर्सिटी, दार्जिलिंग

इंटरनेशनल सेंटर ऑफ मद्रास यूनिवर्सिटी, चेन्नई

(www.unom.ac.in/ icom.html)

2सिक्किम मनिपाल यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ, मेडिकल ऐंड टेक्नोलॉजिकल साइंसेज, गंगटोक

(www.sikkimmanipal.net)

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इकोलॉजी ऐंड एनवायरनमेंट, नई दिल्ली

(www. Ecology.edu/ iiee /courses.htm)

नेशनल सेंटर फॉर डिजास्टर मैनेजमेंट, इंद्रप्रस्थ एस्टेट, रिंग रोड, नई दिल्ली

सेंटर फॉर सिविल डिफेंस कॉलेज, नागपुर

एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन ट्रेनिंग ऐंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, हैदराबाद

डिजास्टर मिटिगेशन इंस्टीट्यूट, अहमदाबाद

एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन ट्रेनिंग ऐंड रिसर्च इंस्टीट्यूट हैदराबाद

सेंटर फॉर डिजास्टर मैनेजमेंट, पुणे

एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट, नोएडा

नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी, पटना

राजर्षि टंडन ओपन यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद।

सभी को आना चाहिए डिजास्टर मैनेजमेंट

डिजास्टर मैनेजमेंट के कोर्सेज में आखिर क्या आकर्षण है?

जब से सीबीएसई के कोर्स में विषय के रूप में शामिल हुआ है, इसे इम्पॉर्टेट स्टडी के रूप में देखा जाने लगा है। दिल्ली में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट है। नागपुर और महाराष्ट्र जैसी कई जगह इसकी पढाई होने लगी है। अब डिजास्टर मैनेजमेंट के प्रति सरकारी एजेंसियां और प्राइवेट सेक्टर दोनों बहुत जागरूक हुए हैं। कारपोरेट व‌र्ल्ड में हर कंपनी में डिजास्टर मैनेजर या रिस्क मैनेजर नियुक्त होता है।

भारत मे इसकी कितनी जरूरत है?

बहुत ज्यादा। क्योंकि यहां के लोगों को बार-बार डिजास्टर फेस करना पडता है। कभी भूकंप आ जाता है, कभी सुनामी। मानसून के पहले सूखे की आपदा, तो मानसून के बाद बाढ की आपदा। इसके अलावा भी आपदाएं कम नहीं है। मैन मेड आपदाएं घटित होती ही रहती हैं। कहीं आग लग जाती है, कहीं एक्सीडेंट। पूरा जीवन ही आपदाओं से भरा हुआ है। बीस सालों में आपदाएं पांच गुना बढी हैं। सरकार को इसके लिए जीडीपी का 2.5 फीसदी खर्च करना पडता है।

आपदा प्रबंधन में किस तरह के स्टूडेंट को आना चाहिए? क्या किसी भी स्ट्रीम का स्टूडेंट कोर्सेज में एडमिशन ले सकता है?

मेरा तो मानना है कि आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण हर व्यक्ति को लेना चाहिए। वैसे इसमें जो संस्थान डिग्री-डिप्लोमा और पाठ्यक्रम चला रहे हैं, उनमें स्ट्रीम मायने नहीं रखती। एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट फिलहाल प्रोफेशनल्स को ट्रेनिंग दे रहा है।

(बी.के. बोपन्ना, डायरेक्टर जनरल, एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट से बातचीत के अंश)

बनाइए करियर की स्ट्रैटजी

अधिक पैसों का प्रलोभन, स्ट्रैटजिक सेक्टर में मिलने वाली चुनौतियों की जगह नहीं ले सकता। अगर विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों का सामना करना आपको पसंद है, तो आप इस क्षेत्र के लिए ही बने हैं- यह कहना है जेएनयू के प्रोफेसर प्रणव एन देसाई का। भारत के स्ट्रैटजिक संगठनों में प्रमुख तीन इसरो, डीआरडीओ तथा डीएई सम्मानित पदों पर रोजगार के अवसर प्रदान करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार के रिसर्च तथा डेवलेपमेंट पर होने वाले खर्च का लगभग 60 फीसदी इन्हीं तीन सेक्टरों तक सीमित है।

डीआरडीओ

डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन यानी डीआरडीओ की स्थापना 1958 में हुई थी। उस वक्त इसके अंतर्गत 10 लेबोरेटरीज कार्य करती थी। आज देश में इसकी 50 लेबोरेटरीज हैं। इनमें 7,500 वैज्ञानिक कार्यरत हैं तथा तकरीबन 22,000 दूसरे साइंटिफिक, टेक्निकल तथा सपोर्टिग स्टाफ हैं।

कार्य

डीआरडीओ की गतिविधियों में मुख्य रूप से भारत की सुरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए नई-नई तकनीकें विकसित करना शामिल है। इसके अंतर्गत आर्मी, नेवी तथा एयरफोर्स की जरूरत के मुताबिक जटिल हथियारों और उपकरणों की डिजाइनिंग, डेवलेपमेंट तथा प्रोडक्शन का कार्य किया जाता है।

रिक्रूटमेंट

डीआरडीओ में साइंटिस्टों की नियुक्ति रिक्रूटमेंट असेसमेंट सेंटर यानी आरएसी द्वारा की जाती है।

डीआरडीओ में एंट्री लेवल पर साइंटिस्ट बी ग्रेड में निम्न स्कीम के माध्यम से प्रवेश पाया जा सकता है-

साइंटिस्ट एंट्री टेस्ट

एजुकेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूशंस जैसे आईआईटी, एनआईटी, आईआईएससी, आइटीबीएचयू, सेंट्रल यूनिवर्सिटी तथा दूसरे प्रमुख संस्थाओं में कैंपस सेलेक्शन के माध्यम से। इसके अंतर्गत साइंटिस्ट सी, डी, ई, जी ग्रेड में भी युवाओं के लिए बेहतरीन अवसर हैं। फेलोशिप के माध्यम से भी इसमें एंट्री होती है।

योग्यता

डीआरडीओ के रिक्रूटमेंट एसेसमेंट सेंटर के डायरेक्टर ऋषभ कुमार जैन बताते हैं, हम वैज्ञानिकों की नियुक्ति का काम देखते हैं- हम बी, सी, डी और ई आदि कई स्तरों पर वैज्ञानिकों की नियुक्ति करते हैं। नियुक्ति के तीन तरीके हैं- पहला तरीका है, कॉमन एंट्रेंस टेस्ट का। यह अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित किया जाता है। दूसरा तरीका है, कैंपस प्लेसमेंट का। इसके अलावा रोसा स्कीम के तहत भी वैज्ञानिकों की नियुक्ति की जाती है। इस योजना में फ्रेश पीएचडी किए हुए लोगों को लिया जाता है। एनआरआई को एडहॉक पर रखा जाता है। डीआरडीओ में आवेदन-पत्र भेजने के लिए स्नातकोतर स्तर पर कम से कम 60 प्रतिशत अंक होने आवश्यक हैं। बीटेक और बीई में भी प्रथम श्रेणी के साथ उत्तीर्ण होना जरूरी है।

अवसर

डीआरडीओ में हजारों की संख्या में साइंटिस्ट हैं। कई वैज्ञानिक अपना क्षेत्र व संस्था बदलते रहते हैं, जिसके कारण यहां वैज्ञानिकों की हमेशा कमी बनी रहती है। इसके अलावा कई नॉन-इंजीनियरिंग या अन्य संस्थाएं भी हैं, जहां रोजगार के बेहतरीन व सम्मानजनक अवसर मौजूद हैं। दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज ऐंड एनालिसिस अग्रणी संस्था है। यहां शोधार्थी के अलावा फेलो, सीनियर फेलो, विजिटिंग फेलो आदि स्तर के कई मौके हैं। इंस्टीट्यूट फॉर कंफ्लिक्ट स्टडीज, ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी भी हैं, जहां शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) द्वारा प्रवेश लिया सकता है। इसके लिए न्यूनतम योग्यता इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन है।

इसरो

भारत सरकार द्वारा जून 1972 में स्पेस कमीशन तथा डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस का गठन किया गया। इसरो से जुडे प्रत्येक सदस्य संगठन की रीढ हैं। इसरो 1975 से लेकर अब तक लगभग 36 से भी अधिक कम्युनिकेशन तथा रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट लांच कर चुकी है। पिछले साल चंद्रयान-1 की सफल लॉन्चिंग भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रति लोगों में आकर्षण को बढाया है। भविष्य में इसकी कई बडी योजनाएं हैं।

रिक्रूटमेंट चैनल

भारतीय स्पेस अभियान को आगे बढाने के लिए डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस के प्रमुख अंग के रूप में नेशनल रिमोर्ट सेंसिंग एजेंसी (एनआरएसए) का गठन किया गया है। एनआरएसए अर्थ ऑब्जर्वेशन प्रोग्राम तथा डिजास्टर मैनेजमेंट सपोर्ट प्रोग्राम के लिए यह प्रमुख रूप से जाना जाता है। एनआरएसए के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों जैसे जियोलॉजी, वाटर रिसोर्स इंजीनियरिंग, हाइड्रोलॉजी, रिमोट सेंसिंग, जियोग्राफिकल इनफॉर्मेशन सिस्टम तथा इनवायरमेंट से जुडे युवा शोधार्थी के लिए रिसर्च एसोसिएट, सीनियर तथा जूनियर फेलोशिप ऑफर किया जाता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (आईआईएसटी) इसरो में एंट्री के लिए प्रमुख माध्यम है।

कहां मिलेगी नौकरी

डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस के अंतर्गत साइंटिस्टों और इंजीनियरों की विक्रम सराभाई स्पेस सेंटर, सतीश धवन स्पेस सेंटर, नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी में हमेशा डिमांड रहती है। लिक्विड प्रोपल्सन सिस्टम सेंटर में ग्रेजुएट ट्रेनी के लिए भी अवसर उपलब्ध हैं। वहीं नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी तथा फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी में पोस्ट के लिए डॉक्टरल फेलो (पीडीएफ), सीनियर रिसर्च फेलो (एसआरएफ), जूनियर रिसर्च फेलो (जेआरएफ) तथा रिसर्च फेलो भी आवेदन कर सकते हैं।

डीएई डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी यानी डीएई की स्थापना 3 अगस्त 1954 में हुई। इसका मुख्य काम न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी का विकास करना है। इसकी मुख्य गतिविधियां पॉवर सेक्टर में न्यूक्लियर पॉवर की साझेदारी बढाने के लिए नई-नई तकनीकों का विकास व प्रयोग, रिसर्च रिएक्टर का निर्माण व प्रयोग, आधुनिक तकनीकों मसलन, लेजर, सुपर कंप्यूटर, रोबोटिक्स, स्ट्रैटजिक मैटीरियल्स, इंस्ट्रूमेंटेशन का विकास तथा न्यूक्लियर एनर्जी के लिए बेसिक रिसर्च जैसे कार्य हैं।

रिक्रूटमेंट चैनल

डीएई द्वारा विभिन्न गतिविधियों को संचालित करने के लिए योग्य साइंटिस्टों, इंजीनियरों तथा टेक्निकल अधिकारियों की हमेशा से डिमांड रही है। डॉ. होमी जहांगीर भाभा के नाम पर 1957 में एक ट्रेनिंग स्कूल की शुरुआत की गई, जिसे भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (बार्क) के नाम से जाना जाता है। सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी (सीएटी), इंदौर, इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च (आइजीसीएआर), कलपक्कम, न्यूक्लियर फ्यूल कॉम्प्लेक्स (एनएफसी), हैदराबाद तथा सेंटर्स ऑफ न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन इंडिया लिमिटेड (कोटा, कलपक्कम तथा कैगा) बार्क ट्रेनिंग स्कूल से संबंद्ध प्रशिक्षण संस्थान हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, अब तक लाखों साइंटिस्ट व इंजीनियर इससे प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं। इन संस्थानों से प्रतिवर्ष लगभग 300 साइंटिस्ट तथा इंजीनियर न्यूक्लियर साइंस तथा तकनीक में प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। प्रशिक्षण के पश्चात डीएई के विभिन्न पदों पर उनकी नियुक्ति आसानी से हो जाती है।

इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च में जूनियर व सीनियर रिसर्च फेलोशिप की भी सुविधा है। चयनित अभ्यर्थी डीएई की डीम्ड यूनिवर्सिटी के अंतर्गत होमी भाभा नेशनल इंस्टीट्यूट में पीएचडी के लिए भी योग्य होते हैं। चयनित छात्रों को छात्रवृत्ति के अलावा अन्य सुविधाएं भी प्रदान की जाती हैं। एटॉमिक एनर्जी से जुडे औद्योगिक क्षेत्र की संस्थाओं में भी ऐसे साइंटिस्टों की बडी डिमांड है। बार्क के सहयोग से न्यूक्लियर फ्यूल कॉम्प्लेक्स, हैदराबाद तथा हैवी वाटर बोर्ड, मुंबई द्वारा सम्मिलित रूप से हैदराबाद में एनएचटीएस की स्थापना की गई है। यह संस्था डीएई के आइएंडएम सेक्टर की जरूरतों को पूरा करता है।

कैसे करें एंट्री

अखिल भारतीय स्तर पर चयनित केमिकल, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड इंस्ट्रूमेंटेशन तथा मैकेनिकल इंजीनियरिंग स्ट्रीम के ग्रेजुएट छात्रों को एक वर्ष का न्यूक्लियर साइंस तथा इंजीनियरिंग में ओरियंटेशन कोर्स कराया जाता है। प्रत्येक छात्र को सभी सुविधाओं के अलावा 8,000 रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति भी प्रदान की जाती है। कोर्स करने के पश्चात इनकी नियुक्ति इन संस्थानों में आसानी से हो जाती है।

सात समंदर पार की उड़ान

विदेश में पढाई और आंखों में कॉर्पोरेट व‌र्ल्ड का ऊंचा ओहदा, हर छात्र का सपना होता है। खासकर अमेरिका, यूके, फ्रांस, कनाडा, जापान जैसे किसी देश से पढाई करने के बाद न केवल एक्सपोजर मिलता है, बल्कि बडी व मल्टीनेशनल कंपनियों में आसानी से नौकरी भी मिल जाती है। लेकिन विदेश में पढाई करने के लिए आपको टीओईएफएल, आईईएलटीएस, जीएमएटी, जीआरई जैसे एग्जामिनेशन के चक्रव्यूह को भेदना होगा।

यूनेस्को की रिपोर्ट

यूनेस्को की हालिया रिपोर्ट ग्लोबल एजुकेशन डाइजेस्ट-2009 के मुताबिक चीन के बाद सबसे अधिक भारतीय छात्र ही विदेश पढाई करने जाते हैं। जहां तक टॉप स्टडी डेस्टिनेशन की बात है, तो इसमें अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और जापान प्रमुख हैं। रिपोर्ट के मुताबिक , पहले अमेरिका भारतीय छात्रों का मुख्य स्टडी डेस्टिनेशन हुआ करता था। तकरीबन 71 फीसदी भारतीय छात्र अमेरिका पढने के लिए जाते थे। इसके बाद 8 प्रतिशत यूके और 7.6 प्रतिशत ऑस्ट्रेलिया। लेकिन अब स्थिति काफी बदल गई है। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस, जापान, न्यूजीलैंड, साउथ अफ्रीका, चीन और साउथ कोरिया भी भारतीय छात्रों के पसंदीदा स्टडी स्पॉट बनते जा रहे हैं। वहीं उद्योग चेंबर एसोचैम के मुताबिक, प्रति वर्ष करीब पांच लाख भारतीय छात्र पढाई के लिए विदेश का रुख करते हैं।

किस देश में कौन-सा टेस्ट

यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के शैक्षणिक संस्थानों में एडमिशन के लिए टॉफेल, जीआरई, जीमैट और एसएटी स्कोर मान्य हैं। यूके के संस्थानों में एडमिशन के लिए जीसीई क्लियर करना पडता है। कनाडा, आयरलैंड व न्यूजीलैंड जैसे देशों में पढने के लिए टॉफेल या आईईएलटीएस पर्याप्त है। आप ऑस्ट्रेलिया की तरफ रुख करने की सोच रहे हैं, तो यहां के सभी शैक्षणिक संस्थानों में आईईएलटीएस का स्कोर मान्य है।

इंटरनेशनल इंग्लिश लैंग्वेज टेस्टिंग सिस्टम

(IELTS)

आईईएलटीएस एग्जाम के जरिए कैंडिडेट्स के अंग्रेजी ज्ञान को जांचा-परखा जाता है। इस परीक्षा का आयोजन ब्रिटिश काउंसिल, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी, ईएसओएल और आईडीपी एजुकेशन, ऑस्ट्रेलिया द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है।आईईएलटीएस स्कोर ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा, आयरलैंड, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका के शैक्षणिक संस्थानों के अलावा, कुछ अमेरिकी संस्थानों में भी मान्य हैं।

www.ieltsindia.com

टेस्ट ऑफ इंग्लिश एज ए फॉरेन लैंग्वेज

(toefl)

अमेरिका सहित दुनिया के 130 देशों के संस्थानों में इसका स्कोर मान्य है। वैसे, तो टॉफेल का स्कोर दो साल के लिए मान्य होता है, लेकिन अधिकतर संस्थान ताजा स्कोर ही मांगते हैं। अब अधिकतर सेंटरों पर आईबीटी यानी इंटरनेट बेस्ड टेस्ट लिया जाता है। टॉफेल टेस्ट में मुख्य रूप से रीडिंग, लिसनिंग, राइटिंग और स्पीकिंग (केवल आईबीटी) की परीक्षा होती है।

www.ets.org

ग्रेजुएट मैनेजमेंट टेस्ट

(GMAT)

मैनेजमेंट कॉलेजों में एडमिशन के लिए जीमैट एग्जाम देना जरूरी होता है। दुनिया में तकरीबन 1,900 ऐसे बिजनेस स्कूल हैं, जहां जीमैट स्कोर मान्य हैं। जीमैट सामान्यतया तीन सेक्शनों में बंटा होता है: एनालिटिकल राइटिंग एसेसमेंट, क्वांटिटेटिव और वर्बल। आमतौर पर इसमें रीजनिंग, कॉम्प्रिहेंशन, प्रॉॅब्लम सॉल्विंग क्वेश्चन आदि से जुडे सवाल पूछे जाते हैं।

http://gmat.learnhub.com

स्कॉलिस्टिक एप्टीट्यूड टेस्ट

(SAT)

अमेरिका के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में एडमिशन के लिए सैट यानी स्कॉलिस्टिक एप्टीट्यूड टेस्ट से होकर गुजरना होता है। यह परीक्षा ईटीएस (एजुकेशनल टेस्टिंग सर्विस) द्वारा संचालित की जाती है। इसके जरिए आपकी समझने की क्षमता, मैथ्स और वर्बल रीजनिंग के ज्ञान की जांच की जाती है। परीक्षा में वस्तुनिष्ठ टाइप प्रश्न पूछे जाते हैं।

www.collegeboard.com

ग्रेजुएट रिकॉर्ड एग्जामिनेशन

(GRE)

अमेरिका के कई ग्रेजुएट कॉलेजों में एडमिशन जीआरई स्कोर के आधार पर होता है। आमतौर पर जीआरई का स्वरूप सैट एग्जाम की तरह की होता है। जीआरई कम्प्यूटर आधारित परीक्षा है।

http://www.greguide.com

मेडिकल कॉलेज एडमिशन टेस्ट

(MCAT)

अमेरिकी यूनिवर्सिटी और कनाडा के उच्च स्तरीय मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए एएएमसी (असोसिएशन ऑफ अमेरिकन मेडिकल कॉलेज) यानी एमकैट आयोजित करता है। एमकैट की परीक्षा में वर्बल रीजनिंग, फिजिकल साइंस, बायोलॉजिकल साइंस और राइटिंग सैंपल से सवाल पूछे जाते हैं। पहले तीन सेक्शन में मल्टीपल च्वाइस टेस्ट होते हैं।

www.aamc.org/mcat

टोईक

(TOEIC)

टोईक अर्थात टेस्ट ऑफ इंग्लिश फॉर इंटरनेशनल कम्युनिकेशन अंग्रेजी भाषा के ज्ञान के लिए होता है। बिजनेस संस्थाएं अंग्रेजी भाषा की परीक्षा लेने के लिए टोईक का उपयोग करती हैं। इसमें कॉर्पोरेट डेवलपमेंट, फाइनेंस, बजटिंग, कॉर्पोरेट प्रॉपर्टी, आईटी,पर्सनल, टेक्निकल मामले, हेल्थ व बिजनेस ट्रेवल से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं।

http://www.ets.org

लॉ स्कूल एडमिशन टेस्ट

(LSAT)

अमेरिका एवं कनाडा के लॉ कॉलेजों में प्रवेश के लिए यह टेस्ट लिया जाता है। इसमें लॉजिकल रीजनिंग, रीडिंग कॉम्प्रिहेंशन, एनालिटिकल रीजनिंग आदि से सवाल पूछे जाते हैं।

www.lsac.org

जनरल सर्टिफिकेट ऑफ एजुकेशन

(GCE)

यूके से उच्च शिक्षा और प्रोफेशनल शिक्षा हासिल करने के लिए जीसीई एग्जाम में सफल होना जरूरी है। इसमें दो लेवॅल पर एग्जाम होता है। ए लेवॅल का स्कोर यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए मान्य होता है।

www.britishcouncil.org

amitnidhi@nda.jagran.com

आइए जानते हैं अलग-अलग टेस्ट की तैयारी के लिए क्या रणनीति अपनाएं..

इंटरनेशनल इंग्लिश लैंग्वेज टेस्ट और टेस्ट ऑफ इंग्लिश एज ए फॉरेन लैंग्वेज में पूछे जाने वाले प्रश्नों का पैटर्न करीब-करीब एक जैसा ही होता है। इसमें सफल होने के लिए जरूरी है कि अंग्रेजी भाषा पर आपकी पकड अच्छी हो। तैयारी के लिए अंग्रेजी न्यूजपेपर और मैग्जीन नियमित रूप से पढें या फिर आप तैयारी के लिए किसी स्तरीय इंस्टीट्यूट की मदद भी ले सकते हैं।

जीमैट के लिए अंग्रेजी के साथ-साथ मैथ्स पर भी काफी अच्छी पकड होनी चाहिए, इसमे क्रिटिकल रीजनिंग, कॉम्प्रिहेंशन आदि से जुडे सवाल पूछे जाते हैं। लेकिन इस टेस्ट में एक बात और देखी जाती है कि आप कम से कम समय में कितने प्रश्नों को हल कर सकते हैं। इसके लिए नियमित अभ्यास बेहद जरूरी है। जीआईई और सैट में पूछे जाने वाले प्रश्नों का पैटर्न भी कुछ-कुछ एक जैसा ही होता है। किसी भी संस्थान में एडमिशन अपनी क्षमता और योग्यता को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए।

आराधना के. महाना,

मैनेजिंग डायरेक्टर

(मानया एजुकेशन प्राइवेट लि., यह संस्थान विदेश

में होने वाली परीक्षाओं की तैयारी कराता है)

खूब अवसर हिंदी में

अब हिंदी केवल राजभाषा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक बाजार में भी अपनी जगह बना रही है। चाहे वह अध्यापन का कार्य हो या कॉल सेंटर्स, टूरिज्म और इंटरप्रेटर का, सभी में अवसर ही अवसर हैं।

आवश्यक गुण

जहां तक स्किल का सवाल है, तो छात्र को हिंदी ऑनर्स या एमए करते समय भाषा की अच्छी समझ जरूरी है। हिंदी भाषा और साहित्य का अध्ययन एक गहन पठन-पाठन की प्रक्रिया है। पढने-लिखने, विचार करने और किसी भी सिद्धांत और उसके व्यावहारिक पक्ष को समझने का भरपूर मौका इस क्षेत्र में मिलता है।

इस संबंध में दिल्ली के सत्यवती कॉलेज के प्रोफेसर मुकेश मानस का कहना है कि इसमें कविता, कहानी के अलावा मीडिया, अनुवाद और रचनात्मक लेखन जैसी कई चीजें हैं, जो करियर बनाने में मदद करती हैं। हिंदी से ऑनर्स करने वालों को नौकरी के लिए कोई दिक्कत नहीं होती। वे विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में हो सकते हैं। ऐसे अनेक क्षेत्र हैं, जहां छात्र अपनी किस्मत आजमा सकते हैं, जैसे -

अध्यापन

हिंदी से बीए व बीएड करने के बाद स्कूलों में हिंदी अध्यापक की नौकरी मिल जाती है। कॉलेज के स्तर पर अध्यापन करने वाले छात्रों को एमए के बाद एमफिल और पीएचडी करने के बाद कॉलेज में प्रवक्ता का पद मिल जाता है। पीएचडी होल्डर कॉलेज व विश्वविद्यालय स्तर पर देश में कहीं भी लेक्चरर की नौकरी पा सकते हैं। अध्यापन के लंबे अनुभव पर वे रीडर व प्रोफेसर भी बन सकते हैं।

मीडिया

हिंदी से स्नातक करने वालों के लिए मीडिया एक बडा अवसर लेकर आया है। देश-विदेश में फैला यह जाल हिंदी के छात्रों को कई तरह से काम करने का अवसर प्रदान करता है। हिंदी भाषा पर अच्छी पकड होने के कारण छात्रों को पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश करने में आसानी होती है। स्टूडेंट्स बीए य एमए के बाद पत्रकारिता का डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स कर सकते हैं। यह कोर्स करने के बाद किसी भी पत्र-पत्रिका में रिपोर्टर या उप संपादक बन सकते हैं।

भारत सरकार का करीब हर संस्थान अपने यहां से हिंदी में पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित करता है। इन पत्रिकाओं में प्रकाशन से लेकर संपादन तक में हिंदी के छात्रों की जरूरत पडती है। प्रिंट मीडिया के अलावा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी हिंदी जानने वालों को प्राथमिकता दी जाती है। इसके अलावा रेडियो में भी रोजगार के अनेक अवसर हैं।

पर्यटन

पर्यटन के क्षेत्र में भी इनके लिए रोजगार के अवसर हैं। इस क्षेत्र में बेहतर करने के लिए कल्चरल टूरिज्म मैनेजमेंट में भी डिप्लोमा कर सकते हैं।

फिल्म

फिल्म और टीवी सीरियल में भी आप अपनी किस्मत आजमा सकते हैं। यदि आपको शब्दों से खेलने में मजा आता है, तो आपको यहां भी काम मिल सकता है और आपकी कल्पना उडान भरती है, तो स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर आप यहां कोशिश कर सकते हैं। इसके अलावा आप गीतकार भी बन सकते हैं।

हिंदी अधिकारी

हिंदी के छात्रों के लिए विभिन्न बैंक राजभाषा अधिकारी की नियुक्ति करते हैं। हिंदी भाषा अधिनियम का प्रावधान है कि सभी संस्थानों में हिंदी अधिकारी को रखना पडेगा। भारत सरकार व निजी संस्थान में हिंदी अधिकारी के रूप में काम करने का अवसर सामने आता है। देश-विदेश में सरकारी संस्थानों में हिंदी सलाहकार के रूप में भी काम करने का अवसर भी मिल सकता है।

अनुवादक

यदि आप किसी दूसरी भाषा पर पकड रखते हैं, तो अनुवादक भी बन सकते हैं। विभिन्न ट्रेवल एजेंसियां और सरकारी व निजी संस्थान ऐसे लोगों को मौका देते हैं। मीडिया के क्षेत्र में भी ऐसे लोगों की काफी डिमांड होती है।

हिंदी का ज्ञान होने के साथ-साथ आपको अंग्रेजी का भी ज्ञान होना चाहिए। कर्मचारी चयन आयोग हर साल हिंदी अनुवादकों की भर्ती करता है।

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षा

हिंदी से स्नातक करने के बाद विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होकर बैंक, न्यायिक सेवा, सिविल सर्विस और स्टेट सर्विस के अलावा रेलवे व बैंक आदि में भी नौकरी के बेहतर अवसर हो सकते हैं।

अन्य क्षेत्र

हिंदी भाषा और साहित्य के छात्र लिंग्विस्टिक का भी कोर्स कर सकते हैं और अच्छी नौकरी पा सकते हैं। इसके साथ ही अगर हिंदी में अच्छी पकड है, तो क्रिकेट कमेंटरी से लेकर फैशन जगत व एड एजेंसी और एनजीओ में भी करियर बनाया जा सकता है।

मिशन मैनेजमेंट

एमबीए का क्रेज बढता ही जा रहा है, क्योंकि बिजनेस व‌र्ल्ड का तेजी से विस्तार हो रहा है और भविष्य में इसमें अपार संभावनाएं देखी जा रही हैं।

क्रेज क्यों?

एबीए एक सम्मानजनक मास्टर डिग्री है, जो बिजनेस व‌र्ल्ड के तमाम फंक्शन और स्थितियों से अवगत कराती है।

किसी भी फील्ड में यह अच्छी जॉब और सम्मानजनक सैलरी दिलाती है।

जॉब करने वाले व खोजने वालों के सामने बहुत से अवसर होते हैं और वे द बेस्ट का चुनाव कर सकते हैं।

मैनेजमेंट करियर आम तौर पर एट्रैक्टिव और ग्लैमरस नजर आता है।

अपना व्यवसाय शुरू करने वालों या उद्योगपति बनने का सपना देखने वालों को यह व्यवसाय चलाने के सारे गुर सिखाता है।

कितने एग्जाम

वैसे तो अलग-अलग संस्थानों के अपने-अपने एग्जाम होते हैं। लेकिन ज्यादातर अच्छे बी-स्कूल कैट और जेमैट को प्रिफर करते हैं। कॉमन एडमिशन टेस्ट (कैट) और ज्वाइंट मैनेजमेंट एंट्रेंस टेस्ट (जीमैट) के अतिरिक्त कुछ और एंट्रेंस टेस्ट हैं- गुजरात कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (जीसेट), एक्सएलआरआई एडमिशन टेस्ट, कर्नाटका एमबीए कॉमन एंट्रेंस टेस्ट, ऑल इंडिया एंट्रेंस टेस्ट (एआईएमईटी), कॉमन एंट्रेंस टेस्ट, महाराष्ट् (सीईटी), सिंबायोसिस नेशनल एप्टीट्यूड टेस्ट (स्नैप), मैनेजमेंट एप्टीट्यूड टेस्ट (मैट), यूपी टेक्निकल यूनिवर्सिटी स्टेट एंट्रेंस एग्जामिनेशन (सीईई), यूपी मैनेजमेंट ऐंड एमसीए कंबाइंड एडमिशन टेस्ट (यूपीएमसीएटी), उत्तरांचल ज्वाइंट एंट्रेंस टेस्ट (यूएजेईटी) एग्जाम की परख

चाहे कैट परीक्षा हो या कोई और एंट्रेंस टेस्ट, सभी का उद्देश्य है छात्र की क्वालिटी को परखना। सभी लिखित परीक्षाओं में ऑब्जेक्टिव टाइप के वैकल्पिक प्रश्न होते हैं। कैट इस बार ऑनलाइन होगा। इन परीक्षाओं में समय कम और प्रश्न ज्यादा दिए जाते हैं। यानी सोचने के लिए बहुत कम समय मिलता है।

इन परीक्षाओं में आपका जीके (राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय घटनाओं, स्थानों, व्यक्तियों और मुद्दों की जानकारी), लॉजिकल व रीजनल एबिलिटी (मैथ्स और स्टेटिस्टिक्स की बेसिक नॉलेज) आदि की परख होती है, वहीं अंग्रेजी भाषा पर आपकी पकड, आपकी बोलने की क्षमता, आपकी भाव-भंगिमा, ग्रामर, लीडरशिप क्वालिटी इत्यादि का टेस्ट भी होता है।

तैयारी कैसे करें

लैंग्वेज, कम्युनिकेशन स्किल और करेंट अफेयर्स की नॉलेज निखारने के लिए प्रतिदिन अंग्रेजी का राष्ट्रीय अखबार और मैग्जीन्स ध्यान से पढिए। सही उच्चारण, स्पेलिंग और ग्रामेटिकल यूज के लिए डिक्शनरी की मदद लीजिए और जो शब्द आप सीखते जाएं, उन्हें नोट भी करते जाएं।

अच्छे स्पोकेन एक्सप्रेशंस के लिए रोज किसी अच्छे न्यूज चैनल के ऐंकर को बोलते हुए ध्यान से देखिए।

कॉमर्स, नॉन मेडिकल व अन्य स्टूडेंट्स को मैथ्स जरूर पढनी चाहिए। मैथ्स और इंजीनियरिंग बैकग्राउंड के स्टूडेंट्स को भी मैथ्स को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

पजल्स हल करना और क्विज कॉम्पिटीशन में हिस्सा लेना लॉजिकल एबिलिटी को बढाने में सहायक होता है।

कैट और जीमैट जैसी परीक्षाओं की तैयारी के लिए बाजार में उपलब्ध अच्छी बुक्स पढें और इंटरनेट पर उपलब्ध ऑनलाइन प्रैक्टिस टेस्ट को आजमाएं। बाजार में एमबीए एंट्रेंस एग्जाम प्रीपरेशन प्रैक्टिस सीडी भी आती हैं, उनका भी सहारा ले सकते हैं।

अपने कमजोर पक्ष को पहचानें और उसे मजबूत करने की कोशिश करें।

किसी अच्छे बी-स्कूल में एडमिशन ले चुके अपने सीनियरों के अनुभवों का फायदा उठाएं और उनका मार्गदर्शन लें।

प्रमुख संस्थान

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (लखनऊ, अहमदाबाद, कोलकाता, इंदौर, बैंगलोर)

जैवियर लेबर रिसर्च इंस्टीट्यूट, जमशेदपुर

इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस, हैदराबाद

फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडी, दिल्ली

यूनिवर्सिटी

जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, मुंबई

स्कूल्स ऑफ मैनेजमेंट, आईआईटी (मुंबई, दिल्ली, चेन्नई)

मैनेजमेंट डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट, गुडगांव

जैवियर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, भुवनेश्वर

क्रेडल ऑफ मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली

सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट, पुणे

इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट ऐंड टेक्नोलॉजी, गाजियाबाद

इंटरनेशनल मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट, दिल्ली

मुद्रा इंस्टीट्यूट ऑफ कम्युनिकेशंस, अहमदाबाद

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड, दिल्ली

vivekbhatnagar@nda.jagran.com

ऑनलाइन होगा कैट

इस बार पहली बार कैट ऑनलाइन आयोजित हो रहा है। यह इंटरनेट बेस्ड नहीं, बल्कि कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट है। यानी इसमें पेपर, पेंसिल के बजाय कंप्यूटर पर माउस क्लिक करके वैकल्पिक सवालों के जवाब देने होंगे।

टेस्ट 28 नवंबर से 7 दिसंबर 2009 के बीच लिया जाएगा। इसमें से आपको टेस्ट की डेट और सेशन (सुबह/दोपहर) का चुनाव करना होगा। यह भारत भर के तीस केंद्रों में एक साथ होगा। इस बार आईआईएम ने कैट को पूरी तरह पेपरलेस बनाने के लिए स्क्रैचकार्ड का सहारा लिया है। कैट में शामिल होने के लिए इस बार बैंक से स्क्रैच कार्ड खरीदना होगा, जिससे आप इस परीक्षा में ऑनलाइन रजिस्टर हो सकते हैं। स्क्रैच वाउचर 9 सितंबर से एक अक्टूबर तक एक्सिस बैंक की शाखाओं से खरीदे जा सकते हैं। एक अक्टूबर तक आपको ऑनलाइन रजिस्टर भी होना होगा।

रजिस्ट्रेशन सबमिट करने के बाद ई-मेल के जरिए आपको एडमिट कार्ड भेजा जाएगा। इसलिए आपकी ई-मेल आईडी होना जरूरी है। परीक्षा विभिन्न जगहों पर होगी। परीक्षा में कैलकुलेशन और रफ कार्र्यो के लिए आपको कागज दिए जाएंगे, जिन्हें बाद में जमा करा लिया जाएगा।

कैट की फीस 1400 रुपये (एससी-एसटी के लिए 700 रुपये) है। टेस्ट के समय आपको एडमिट कार्ड का प्रिंटआउट, एक फोटो आईडी और एक अन्य आईडी (बिना फोटो) ले जाना होगा। अधिक जानकारी के लिए www.catiim.in देख सकते हैं।

अच्छे बी स्कूल का चयन जरूरी

एमबीए का बेहद क्रेज है। किसी भी स्ट्रीम का व्यक्ति एमबीए करना चाहता है। ऐसा क्यों? पहला कारण तो इसकी क्वालिफिकेशन है। इसमें किसी भी स्ट्रीम का ग्रेजुएट एडमिशन ले सकता है। लेकिन सबसे बडी बात यह है कि एमबीए का ब्रॉड स्पेक्ट्रम है।

मैनेजमेंट जीवन के काफी बडे दायरे को कवर करता है। डेटूडे लाइफ में कदम-कदम पर हमें मैनेजमेंट की जरूरत पडती है। बिजनेस में मार्केट का दायरा बढ रहा है। मार्केट की कॉम्प्लेक्सिटी काफी एरिया को कवर करती है। एप्रोप्रिएट टेक्नोलॉजी इस वक्त की बडी जरूरत है। स्ट्रीम या क्षेत्र कोई भी हो, हर चीज के बेस में मैनेजमेंट ही है, उसे व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए। वहीं, करियर की नजर से देखें, तो अच्छे बी-स्कूल के एमबीए को अच्छी कंसर्न में मौका मिलता है और हैंडसम सैलरी ऑफर होती है।

बी-स्कूल चुनने के लिए क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

बी-स्कूल चुनने के लिए उसका बैकग्राउंड, उसकी साख, उसका विजन और टीचिंग क्वालिटी के बारे में पडताल जरूर करनी चाहिए। यह भी देखना चाहिए कि पिछले सत्र के स्टूडेंट्स का प्लेसमेंट कितना और कहां-कहां हुआ है।

प्लेसमेंट की क्या स्थिति रहती है?

एमबीए करने पर आम तौर पर जॉब मिल ही जाती है, लेकिन जहां तक बेस्ट प्लेसमेंट की बात है, तो जो अच्छे बी-स्कूल्स हैं, वहां 100 प्रतिशत प्लेसमेंट होता है, जैसा आईआईएम लखनऊ में होता है। इसीलिए अच्छे बी-स्कूल का चयन करना बहुत इम्पॉर्टेंट है।

किस क्षेत्र के लोगों के लिए एमबीए करना ज्यादा फायदेमंद है?

जैसा कि मैंने पहले कहा, चाहे वह बैंकिंग हो, फाइनेंस हो, आईटी हो, एग्रीकल्चर हो, मेडिकल हो, कोई भी फील्ड ऐसा नहींहै, जिसमें एमबीए लोगों की जरूरत न पडती हो। मेरा तो मानना है कि हमारे देश के पॉलिटीशियन्स को भी मैनेजमेंट का कोर्स करना चाहिए।

काफी संख्या में प्रोफेशनल्स एडमिशन लेते हैं। इसीलिए हम आईआईएम के नोएडा कैंपस को एग्जीक्यूटिव ट्रेनिंग का हब बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

मंदी के बाद आप मैनेजमेंट को कहां देखते हैं ?

मंदी का असर हर क्षेत्र में पडा है। जहां तक मैनेजमेंट का सवाल है, तो पिछले वर्ष अच्छे बी स्कूल में सभी को प्लेसमेंट हो गया था। अब तो मंदी के बादल छंट चुके हैं। इस कारण कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र में करियर बेहतर होगा।

डॉ. देवी सिंह

(डायरेक्टर, आईआईएम, लखनऊ)

अंग्रेजी का आसमान

आजकल बाजार के लिए सबसे अधिक शक्तिशाली भाषा अंग्रेजी ही है। यही कारण है कि यदि आपकी अंग्रेजी पर पकड है, तो देश-विदेश कहीं भी जाकर लोगों से कम्युनिकेट करने के साथ ही नौकरी भी कर सकते हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण इसे अंतरराष्ट्रीय भाषा भी कहा है।

नौकरी भी, पढाई भी

अंग्रेजी भाषा और साहित्य का अध्ययन छात्रों में मूल्याकंन और विश्लेषण करने की क्षमता प्रदान करता है। इन दिनों लोगों में अंग्रेजी के प्रति काफी क्रेज है। यही वजह है कि अंग्रेजी बोलने और सीखने की ललक घर-घर में देखी जा सकती है। कुछ लोग स्पोकेन इंग्लिश का कोर्स चलाकर हजारों की कमाई भी कर रहे हैं। यदि आप स्वरोजगार करना चाहते हैं, तो अपने घर के आसपास कोचिंग खोलकर लोगों को अंग्रेजी बोलना और लिखना सिखा सकते हैं। इसके अलावा यदि आप कहीं नौकरी करते हैं, तो कोचिंग या ट्यूशन पढाकर भी कम समय में बेहतर पैसे कमा सकते हैं। लेकिन इस तरह के प्रोफेशन में आने के लिए जरूरी है कि आपकी अंग्रेजी ग्रामर पर पकड हो, क्योंकि ग्रामर भाषा की रीढ होती है। यदि इस पर कमांड है, तो आप इस प्रोफेशन में अवश्य सफल हो सकते हैं। अगर आप अंग्रेजी से ऑनर्स हैं, तो पार्ट टाइम ट्यूशन पढाकर भी पढाई के खर्च आसानी से निकाल सकते हैं।

प्रतियोगी परीक्षा में अहम

आजकल किसी भी परीक्षा में अंगे्रजी ज्ञान से संबंधित पेपर अवश्य होते हैं। यदि आईएएस या पीओ जैसी प्रतिष्ठित सेवा की बात करें, तो उसमें भी अंग्रेजी से संबंधित पेपर में पास करना अनिवार्य होता है। यदि आप इसमें निर्धारित अंक नहीं लाते हैं, तो आपके शेष पेपर का मूल्यांकन नहीं होता है। इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि अंग्रेजी का ज्ञान कितना जरूरी है। यदि आपकी इस विषय पर पकड है, तो इस विषय को लेकर आप मुख्य परीक्षा भी दे सकते हैं। इंटरव्यू में भी यदि आप अंग्रेजी बोलने और लिखने में सक्षम हैं, तो आपको काफी फायदा हो सकता है।

कैसे बनाएं पकड

अंग्रेजी भाषा पर बेहतर पकड व समझ बनाने के लिए बीए ऑनर्स या एमए करना आवश्यक है। इस कोर्स के माध्यम से अंग्रेजी के प्राचीन इतिहास , पॉलिटिकल थ्योरी, मध्यकालीन अंग्रेजी, विक्टोरियन साहित्य, आधुनिक और उत्तर आधुनिक साहित्य के अलावा नॉवेल, ड्रामा, क्रिटिकल थ्योरी और पोएट्री पढना होता है, जो कि काफी फायदेमंद होता है।

मीडिया

अंग्रेजी के जानकार मीडिया में भी करियर संवार सकते हैं। यहां पर आपकी अलग-अलग भूमिकाएं हो सकती हैं, जैसे कि संवाददाता, संपादक, उपसंपादक, रिपोर्टर और कॉपीराइटर। प्रिंट मीडिया के तहत अंग्रेजी ऑनर्स का छात्र विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी काम कर सकते हैं। दुनिया में अलग-अलग जगहों पर ढेर सारी पत्र-पत्रिकाएं आए दिन अंग्रेजी में निकलती रहती हैं। आप वहां भी अपने लिए अवसर तलाश सकते हैं।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संभावना

स्कूल से लेकर कॉलेज व विश्वविद्यालय में शिक्षक तौर पर काम करने के अवसर भी आपके पास है। इस विषय से बीए ऑनर्स करने के बाद बीएड करके किसी भी सरकारी या गैर सरकारी स्कूल में शिक्षक बन सकते हैं। दूसरी तरफ एमए, एमफिल और पीएचडी करने के बाद किसी भी कॉलेज में लेक्चरर व प्रोफेसर बनने का अवसर भी आपके पास होता है। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी के जानकार के लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों व स्कूलों में अध्ययन और अध्यापन के लिए काफी अवसर हैं।

बीपीओ की पहली पसंद

इस कोर्स से स्नातक करने के बाद आप एनजीओ, कॉरपोरेट सेक्टर, टूरिज्म, दूतावास,पब्लिकेशन , बिजनेस, टीवी , रेडियो ब्रॉडकास्िटग एडवरटाइजमेंट, बीपीओ, इंटरप्रेटर आदि की भूमिका बखूबी निभा सकते हैं। आज अंग्रेजी के जानकारों के लिए बीपीओ में काफी अवसर हैं। इस क्षेत्र में आने के लिए सिर्फ अंग्रेजी बोलना ही काफी है। इसमें डिग्री या डिप्लोमा कोई जरूरी नहीं है।

(दिल्ली के दयाल सिंह कॉलेज के प्रोफेसर शाईस्ता खान से बातचीत पर आधारित)

संध्या रानी

sandhyarani@nda.jagran.com

माइक्रोफाइनेंस: सेवा, शोहरत और संतुष्टि

यदि आप सोशल सेक्टर में करियर बनाने की इच्छा रखते हैं, तो माइक्रोफाइनेंस में बेहतर करियर है। यहां सेवा भी है, समर्पण भी है और साथ ही अपने लिए आय का एक अच्छा जरिया भी। नोबेल पुरस्कार विजेता बांग्लादेश के मोहम्मद युनुस या फिर भारत के विक्रम अकूला दोनों ने ही माइक्रोफाइनेंस के जरिये न केवल लाखों गरीबों को जीने का जरिया मुहैया कराया, बल्कि इससे कई को रोजगार के मौके भी उपलब्ध कराए। इसके साथ-साथ अपने लिए दुनिया भर की शोहरत भी बटोरी है। आप भी इनकी तरह बनने की इच्छा रखते हैं, तो माइक्रोफाइनेंस में करियर बना सकते हैं।

माइक्रोफाइनेंस का दायरा

परंपरागत वित्तीय क्षेत्र के उलट माइक्रोफाइनेंस जरूरतमंदों गरीबों को वित्तीय ऋण मुहैया कराता है। यह राशि 500 रुपये भी होती हैं और 50,000 भी। इनके दायरे में छोटे आय वाले वे सभी व्यक्ति होते हैं, जिनको व्यवसाय चलाने के लिए छोटी रकम भी जुटाना मुश्किल होता है। चूंकि बैंकों से ऋण लेना एक मुश्किल काम होता है, इसलिए माइक्रोफाइनेंस संस्था ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें अपनी आजीविका चलाने के लिए ऋण देने के अलावा प्रशिक्षण सुविधा भी उपलब्ध कराता है। इसके लिए गैर-सरकारी संगठन भी बढ-चढकर हिस्सा ले रहे हैं।

एसकेएस इंडिया के संस्थापक व सीईओ विक्रम अकूला के अनुसार, भारत में 40 करोड से अधिक गरीब परिवार हैं, जिनके लिए कुल 3,60,000 करोड रुपये ऋण की जरूरत है, जबकि वर्तमान में सक्रिय माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं द्वारा 20,000 करोड रुपये ही मिल पा रहे हैं। इस लिहाज से देखा जाए, तो भारत में माइक्रोफाइनेंस के क्षेत्र में भविष्य की संभावनाएं काफी है।

अवसर

माइक्रोफाइनेंस के क्षेत्र में रोजगार मुख्यत: तीन स्तर पर उपलब्ध हैं :

एंट्री लेवल : एंट्री लेवल पर स्थानीय अंडरग्रेजुएट लोगों की नियुक्ति की जाती है।

मिडिल लेवल : मिडिल लेवल या एग्जीक्यूटिव लेवल पर गे्रजुएट तथा अंडरग्रेजुएट की नियुक्ति की जाती है। इनके लिए समुचित प्रशिक्षण की भी व्यवस्था होती है।

सीनियर लेवल : सीनियर लेवल पर मैनेजेरियल पोस्ट आते हैं। इसके अंतर्गत मैनेजमेंट प्रोफेशनल और ग्रेजुएट्स की बडी डिमांड है।

जॉब सिक्योरिटी

यह क्षेत्र प्रारंभिक अवस्था में ही है। इस कारण इसमें अवसर ही अवसर हैं। हाल ही में दक्षिण भारत में सक्रिय माइक्रोफाइनेंस संस्थाएं उत्तर भारत की ओर रुख कर रही है। उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश, पंजाब आदि में निम्न आय वाले परिवारों की संख्या अधिक है। यही कारण है कि माइक्रोफाइनेंस संस्थाएं यहां अपना कारोबार फैलाने की तैयारी में है।

एसकेएस वाइस प्रेसिडेंट (एचआर) मंजुशा राउलकर के अनुसार, चालू वित्त वर्ष में एसकेएस ने 9 हजार करोड रुपये ऋण बांटने का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा अन्य माइक्रोफाइनेंस संस्थाएं, जैसे बेसिक्स व सिडबी भी इस राह पर हैं।

संस्थान

इंडियन स्कूल ऑफ माइक्रोफाइनेंस फॉर वीमन,

अहमदाबाद

दिल्ली स्कूल ऑफ सोल वर्क

इंस्टीट्यूट फॉर फाइनेंशियल मैनेजमेंट ऐंड रिसर्च, चेन्नई

इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आणंद, गुजरात

जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, भुवनेश्वर

इंटरप्राइज डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट

संजय कुमार

चुनौतीपूर्ण व सम्मानित करियर

माइक्रोफाइनेंस प्रारंभिक अवस्था में है। इस कारण इसमें बेहतर भविष्य है। गत कुछ वर्षों में माइक्रोफाइनेंस काफी चर्चा में आया है, इसकी वजह?

वर्ष 2006-07 की बात है, जब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने अपनी क्रेडिट पॉलिसी में कई स्तरों पर बदलाव की घोषणा की। राज्य स्तर पर काम करने वाले बैंक, समितियों को यह आदेश दिया गया कि राज्य के किसी भी एक जिले में सौ फीसदी लोगों तक इसकी पहुंच होनी चाहिए। पिछले कुछ वर्षों में कुछ वित्तीय बैंक और निजी कंपनियां भी इस क्षेत्र में प्रवेश कर चुकी हैं। यह प्रयोग भारत में भी सफल हो रहा है, जिसके कारण इस ओर सभी आकर्षित हो रहे हैं।

करियर के लिहाज से कैसा क्षेत्र मानते हैं?

रोजगार का स्तर और इसकी प्रकृति ऐसी है कि यह प्रत्येक लेवल पर आकर्षण पैदा करता है। समाज सेवा तो है ही। छोटे स्तर से लेकर बडे स्तर तक हर जगह नौकरी की गुंजाइश है। एंट्री लेवल पर फील्ड स्टाफ या लोन ऑफिसर की नियुक्ति की जाती है। सीनियर स्तर पर फे्रश मैनेजमेंट की अधिक आवश्यकता है। एरिया मैनेजर के रूप में इनकी नियुक्ति होती है। इन पर काफी जिम्मेदारियां होती हैं, साथ ही इन्हें डिसीजन मेकिंग का भी पूरा अधिकार होता है। यही कारण है कि इनका जॉब प्रोफाइल चुनौतीपूर्ण भी है।

एक प्रोफेशनल के लिए इसमें किस तरह के अवसर हैं?

प्रशिक्षण के उपरांत फील्ड असिस्टेंट को सेंटर्स का आवंटन किया जाता है, जहां से वे अपने कार्य की शुरुआत करते हैं। प्रमोशन तथा ग्रोथ की अपॉरच्युनिटी हर एक लेवल पर है। तीन से चार साल के अनुभव के बाद ब्रांच ऑफिस में डेस्क जॉब हासिल किया जा सकता है। अनुभव बढने के साथ उनको ब्रांच में दूसरे कार्यों, जैसे अकाउंटिंग तथा एडमिनिस्ट्रेशन का कार्यभार भी दिया जा सकता है। पर्याप्त अनुभव हासिल कर लेने के बाद यूनिट हेड भी बनाया जा सकता है। इसी प्रकार प्रोन्नति के जरिये असिस्टेंट ब्रांच मैनेजर भी बनाया जा सकता है।

भारत में माइक्रोफाइनेंस का भविष्य कैसा है?

आज कई लोग इस क्षेत्र में सहयोग दे रहे हैं। गैर-सरकारी संगठन भी इसमें बडी संख्या में सहयोग के लिए आगे आ रहे हैं। लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए, उनकी आजीविका के लिए ऋण प्रदान करने से लेकर उनको प्रशिक्षित करने जैसी व्यवस्था भी दी जा रही है। भारत की एक बडी आबादी निम्न आय वाली है, जिनको आर्थिक मदद की दरकार है।

(मंजुशा राउलकर, वाइस प्रेसिडेंट, ह्यूमन रिसोर्स, एसकेएस माइक्रोफाइनेंस)

साइबर क्राइम पर नजर

साइबर क्राइम की बढती घटनाओं के कारण कंप्यूटर फोरेंसिक एक्सप‌र्ट्स की मांग लगातार बढ रही है। एक अनुमान के मुताबिक, इस समय देश में ऐक्टिव इंटरनेट यूजर्स की संख्या लगभग साढे चार करोड है। जिस प्रकार से इसका उपयोग बढ रहा है, उसी अनुपात में ऑनलाइन और साइबर अपराध से जुडे कई मामले भी प्रकाश में आने लगे हैं। इन सब को देखते हुए कंप्यूटर और नेटवर्क सुरक्षाओं पर ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा है।

कंप्यूटर फोरेंसिक

आमतौर पर कंप्यूटर फोरेंसिक विशेषज्ञों को साइबर पुलिस या डिजिटल डिटेक्टिव भी कहा जाता है। इन दिनों साइबर क्राइम की घटनाएं लगातार बढती जा रही है और अधिकांश लोग किसी-न-किसी रूप में साइबर अपराध की चपेट में आ रहे हैं। कंप्यूटर फोरेंसिक साइबर क्राइम से बचाने में मदद करते हैं।

पढाई

कंप्यूटर और साइबर अपराध के तहत छात्रों को साइबर अपराध से जुडे विभिन्न पहलुओं से अवगत कराया जाता है, जिसमें कंप्यूटरीकृत और नेटवर्क से जुडे जोखिम को समझना, कंप्यूटर अपराध से जुडे सुराग की पहचान करना, कंप्यूटर अपराधों की जांच के पहलुओं के बारे में जानना, कंप्यूटर से जुडे अपराधों की रोकथाम के विभिन्न उपायों को समझना और साइबर नुकसान को सीमित रखने के लिए सुरक्षा तकनीकों के बारे में बताया जाता है।

कोर्स और योग्यता

साइबर लॉ से जुडे कोर्स में एडमिशन बारहवीं के बाद लिया जा सकता है। साइबर सुरक्षा से संबंधित स्नातकोत्तर कोर्स में एडमिशन अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा के आधार पर दिया जाता है।

सिलेबस

इस विषय के अंतर्गत डिजिटल मीडिया का विश्लेषण, साइबर अपराध और साइबर कानून की मौलिक बातें, कंप्यूटर फोरेंसिक सिस्टम और अपराध के डिजिटल सबूत, अपराधों से परिचय, ई-कॉमर्स-से जुडे मामले, बौद्धिक संपदा और साइबर स्पेस से जुडे विषय होते हैं।

संभावनाएं

इन दिनों लोगों की निर्भरता इंटरनेट पर बढती जा रही है। इससे साइबर क्राइम की घटनाएं भी बढ रही है। ऐसी स्थिति में साइबर क्राइम पर रोक लगाने के लिए ऐसे एक्सपर्ट की जरूरत बढ गई है, जो कंप्यूटर फोरेंसिक या साइबर क्राइम में एक्सपर्ट हों। इस फील्ड से जुडे पेशेवरों के लिए प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों के साथ-साथ सरकारी कंपनियों में भी रोजगार के अवसर हैं।

इसके अलावा, वेब डेवलपर्स एडवाइजर, मिनिस्ट्री ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और कॉर्पोरेट हाउस में एडवाइजर, आईटी कंपनी, बैंक, लॉ फर्म में साइबर कंसल्टेंट, टेक्नोलॉजी फर्म में रिसर्च असिस्टेंट, सिक्योरिटी ऑडिटर के साथ-साथ मल्टीनेशनल कंपनी में ट्रेनर के रूप में भी करियर बना सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट रंजन कुमार कहते हैं कि इन दिनों हर तरह के लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं और कुछ लोग इसका बेजा उपयोग भी करने लगे हैं। इस तरह की घटनाओं पर रोकथाम लगाने के लिए कंप्यूटर फोरेंसिक एक्सपर्ट की जरूरत होती है।

इंस्टीट्यूट वॉच

एनएएलएसएआर, हैदराबाद

www.nalsaruniv.org

सिम्बायोसिस सोसाइटीज लॉ कॉलेज, पुणे और नलसार यूनिवर्सिटी,

www.symlaw.ac.in

नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया, बेंगलुरु विश्वविद्यालय-72

www.nis.ac.in

एशियन स्कूल ऑफ साइबर लॉ, पुणे,

www.arianlaws.org

भारतीय सूचना और प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद

www.iiita.ac.in

दूरस्थ शिक्षा केंद्र, हैदराबाद विश्वविद्यालय

www.uohy.ernet.in

अमिटी लॉ स्कूल, दिल्ली

www.amity.org

साइबर लॉ कॉलेज एनएएवीआई, चेन्नई, मैसूर, हुबली, मैंगलोर तथा बेंगलुरु

www.cyberlawcallege.com

सुनील अभिमन्यु

सॉफ्टवेयर के पारखी

कंप्यूटरने दुनिया बदल दी है, तो इसमें नए-नए सॉफ्टवेयर्स का भी बडा हाथ है। सॉफ्टवेयर के बिना आज के मॉडर्न कंप्यूटर व‌र्ल्ड की कल्पना करना बेमानी ही होगा। सॉफ्टवेयर कंसल्टिंग फर्म ओवम के मुताबिक, ग्लोबल सॉफ्टवेयर टेस्टिंग मार्केट वर्ष 2013 तक 56 अरब डॉलर का हो जाएगा। बढते मार्केट की वजह से सॉफ्टवेयर टेस्टिंग करियर के लिहाज से एक उम्दा क्षेत्र के रूप में उभर रहा है।

क्या है सॉफ्टवेयर टेस्टिंग

जब सॉफ्टवेयर तैयार होता है, तो इसकी गुणवत्ता को परखने के लिए सॉफ्टवेयर टेस्टर की जरूरत होती है। दरअसल, सॉफ्टवेयर टेस्टर, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट की तरह ही एक अलग प्रोफेशन है। सॉफ्टवेयर के निर्माण और विकास से सॉफ्टवेयर टेस्टर का कुछ ज्यादा सरोकार नहीं होता है।

जब सॉफ्टवेयर इंजीनियर और डेवलपर्स किसी सॉफ्टवेयर को तैयार कर लेते हैं, इसके बाद शुरू होता है सॉफ्टवेयर टेस्टर का काम। टेस्टर सॉफ्टवेयर की गुणवत्ता, तकनीकी क्षमता और उसकी स्टैबिलिटी को परखते हैं। आमतौर पर टेस्टिंग को दो हिस्सों में बांटा जाता है- मैनुअली टेस्टिंग और ऑटोमैटेड टेस्टिंग।

मैनुअली टेस्टिंग में टेस्टर सामान्य तौर पर ही किसी सॉफ्टवेयर की जांच करते हैं, लेकिन ऑटोमैटेड टेस्टिंग में टेस्टिंग टूल का इस्तेमाल किया जाता है। इसके तहत ब्लैक बॉक्स टेस्टिंग, व्हाइट बॉक्स टेस्टिंग, ग्रे बॉक्स टेस्टिंग, फंक्शनल टेस्टिंग, स्ट्रेस टेस्टिंग, लोड टेस्टिंग, स्मोक टेस्टिंग, सिस्टम टेस्टिंग, इंटीग्रेटेड टेस्टिंग और रीग्रेशन टेस्टिंग जैसे कार्य होते हैं।

क्यों अपनाएं यह करियर

हाल के महीनों में आईटी कंपनियों की स्थिति बेहद अच्छी नहीं थी, बावजूद इसके सॉफ्टवेयर टेस्टिंग के कारोबार में अच्छी-खासी तेजी देखी गई। एक अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2010 तक टेस्टिंग सेवाओं का अंतरराष्ट्रीय मार्केट 13 अरब डॉलर का हो जाने की उम्मीद है। इसमें से 45 से 50 प्रतिशत काम भारत से आउटसोर्स किए जाने का अनुमान है।

जानकार कहते हैं कि भारत आउटसोर्स टेस्टिंग मार्केट का 70 प्रतिशत हिस्सा हासिल करने की क्षमता रखता है। इससे जाहिर है कि सॉफ्टवेयर टेस्टिंग के फील्ड में आने वाले दिनों में गतिविधियां और तेजी से बढेगी।

कोर्स ऐंड क्वालिफिकेशन

कंप्यूटर एजुकेशन देने वाले देश में प्रमुख संस्थान सॉफ्टवेयर टेस्टिंग में डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स मुहैया कराते हैं। इसके अलावा, इंटरनेशनल सॉफ्टवेयर टेस्टिंग क्वालिफिकेशन बोर्ड द्वारा एक अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त कोर्स उपलब्ध है, जो देश के साथ-साथ विदेश में नौकरी दिलाने में सहायक होता है।

आमतौर पर सॉफ्टवेयर टेस्टिंग कोर्स में एडमिशन के लिए कई संस्थान बीएससी, बीसीए, एमएससी, बीई, बीटेक, एमई, एमटेक जैसी डिग्री की डिमांड करती है।

पर्सनल स्किल

सॉफ्टवेयर टेस्टर को टेक्नोलॉजी के साथ-साथ बिजनेस की भी अच्छी समझ होनी चाहिए। ऐसा होने पर ही टेस्टर बेहतर और बारीकी से अपना काम कर सकेंगे। टेस्टर के लिए सभी आवश्यकताओं का ठीक तरह से आकलन अहम होता है। इसके बाद टेस्टिंग की कार्ययोजना तैयार करना, उनका क्रियान्वयन करना, दोष व खतरे को तलाशना, उनकी रिपोर्ट तैयार करना टेस्टर की ही जिम्मेवारी होती है। इतना ही नहीं, एप्लिकेशन से जुडे संभावित जोखिमों के बारे में आगाह करना भी टेस्टर का ही काम होता है।

जॉब का रोमांच

नैसकॉम के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष में सूचना-प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कंपनियों में 30 से 40 हजार लोगों को नौकरियां मिल सकती हैं। इससे साफ है कि इस इंडस्ट्री में फिर से रौनक लौट रही है। मैकिंजे ऐंड कंपनी द्वारा वर्ष 2020 तक की संभावनाओं पर जारी एक रिपोर्ट में कहा कि मौजूदा तेजी, टैलेंट और इंफ्रास्ट्रक्चर की आपूर्ति के दम पर भारतीय आईटी इंडस्ट्री का निर्यात कारोबार 2020 तक 178 अरब डॉलर का हो जाएगा। घरेलू कारोबार की हिस्सेदारी 2020 तक 50 अरब डॉलर का हो जाएगा।

इस समय भारत की कई आईटी सॉफ्टवेयर कंपनियों ने अब नई भर्तियां करने की घोषणा की है। सॉफ्टवेयर कंपनियों की बात करें, तो इनमें टीसीएस, विप्रो, सत्यम, इन्फोसिस, कॉग्निजंट आदि प्रमुख हैं, जहां आप बेहतर करियर की उम्मीद कर सकते हैं।

इंस्टीट्यूट वॉच

अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई

http://www.annauniv.edu

एसक्यूटीएल इंटीग्रेटेड सोल्यूशंस प्रा.लि, पुणे,

admin@sqtl.com

पीक्यूआर सॉफ्टवेयर

abasu@pqrsoftware.com

त्यागराज कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, मदुरै

malini_vsaravanan@tce.edu

डाटाप्रो कंप्यूटर प्रा.लि, विशाखापत्तनम

mro@datapro.inmfvizag@rediffmail.com

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सॉफ्टवेयर टेस्टिंग, कोयंबटूर

www.iist-global.com

क्रेसटेक

www.crestechsoftware.com

रोमांचक है टेस्टिंग का काम

सॉफ्टवेयर के बढते उपयोग और कारोबार के कारण सॉफ्टवेयर टेस्टिंग के क्षेत्र में काफी स्कोप देखा जा रहा है।

सॉफ्टवेयर टेस्टिंग के प्रति पेशेवरों का नजरिया क्या है?

नए स्नातक आजकल टेस्टिंग में करियर बनाने को काफी उत्सुक नजर आने लगे हैं। यह एक बडा परिवर्तन है। इंटरनेट की बदौलत आज सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन कहीं ज्यादा लोगों द्वारा उपयोग में लाए जा रहे हैं। ऐसे में बिजनेस की सफलता काफी हद तक इन एप्लिकेशन की गुणवत्ता और कार्यक्षमता पर निर्भर करती है।

कितना रोमांचक है यह काम?

सॉफ्टवेयर में दोष ढूंढने का काम काफी रोमांच भरा होता है। इस क्षेत्र में कामयाब होने के लिए एक सकारात्मक रवैया, पैनी नजर और जोश जरूरी है।

क्या भारतीय सॉफ्टवेयर टेस्टर्स अंतरराष्ट्रीय दर्जे के होतेहैं?

टेस्टिंग सेवाओं की आउटसोर्सिग के क्षेत्र में भारत अग्रणी है। यहां का टेस्टिंग मार्केट आकार के लिहाज से अंतरराष्ट्रीय मार्केट की तुलना में कहीं अधिक तेजी से बढ रहा है। जिस तरह हमारे टेस्टर्स ऊंचे से ऊंचे दर्जे के, जटिल से जटिल सिस्टम्स को सफलता से टेस्ट कर रहे हैं, उसे देखकर यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि भारतीय टेस्टर किसी से भी कम नहीं।

टेस्टिंग एक कला है या विज्ञान?

सॉफ्टवेयर टेस्टिंग आज एक स्वतंत्र विधा बन चुकी है। यह टेक्नोलॉजी और बिजनेस ज्ञान के मिश्रण से बनी विधा है। उस लिहाज से देखें, तो इसमें कला भी है, विज्ञान और इंजीनियरी भी। आज करियर के लिहाज से इस क्षेत्र में काफी अच्छी संभावनाएं हैं।

(कॉग्निजंट की सीनियर वाइस प्रेसिडेंट (टेस्टिंग प्रैक्टिस) जी. सुमित्रा से बातचीत)

जमीन से जुड़ें आसमां तक पहुंचें

पिछले कुछ समय से आर्थिक तंगी की शिकार कंपनियों के दिन अब फिरने लगे हैं। मकानों की बिक्री बढने और कर्ज मिलने में आसानी होने से उनकी लंबित परियोजनाएं फिर से शुरू होने लगी हैं। ग्लोबल स्टाफिंग सर्विसेज फर्म मैनपावर की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, आने वाले समय में रियल इस्टेट सेक्टर रोजगार की दृष्टि से काफी हॉट रहेगा। इसमें हर लेवल पर बडी संख्या में स्किल्ड युवाओं की मांग बढ रही है।

कोर्स और योग्यता

रियल इस्टेट में करियर बनाने के लिए अच्छे एकेडमिक करियर के साथ ही संबंधित डिग्री, डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स जरूरी है। यदि इंजीनियरिंग, लीगल, एकाउंट्स, मार्केटिंग, सिक्योरिटी, फाइनेंस और फैसिलिटी मैनेजमेंट से संबंधित कोर्स कर लेते हैं, तो मेहनत और लगन से नई-नई मंजिलें हासिल कर सकते हैं।

कैसे-कैसे जॉब

बडी संख्या में रेजिडेंशियल और कॉमर्शियल कंस्ट्रक्शन की शुरुआत को देखते हुए भारतीय रिअॅल इस्टेट सेक्टर में हर स्तर पर बडी संख्या में स्किल्ड युवाओं की जबर्दस्त मांग है। इनमें प्रमुख हैं:

लैंड डेवलपमेंट: रियल इस्टेट कंपनी में यह सबसे महत्वपूर्ण डिपार्टमेंट होता है। इसका प्रमुख कार्य जमीन का सौदा करना, रेट तय कराना, उससे संबंधित सभी तरह के डाक्यूमेंट्स चेक करना, लीगल फॉर्मेलिटीज पूरा कराना आदि होता है। इस पद पर आमतौर पर लीगल मामलों के जानकार की नियुक्ति की जाती है। यदि आपके पास लॉ से संबंधित डिग्री है, तो यह क्षेत्र आपके लिए है।

ब्रोकरेज: एमटेक के जनरल मैनेजर (मार्केटिंग) सुशील वत्स कहते हैं कि रियल इस्टेट में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बेचने और खरीदने के ये एक्सपर्ट होते हैं। इसके लिए जरूरी है कि उन्हें आसपास के बिल्डर के नए प्रोजेक्ट्स, गवर्नमेंट प्रोग्राम, रियल इस्टेट लॉ, लोकल इकोनॉमिक्स, मॉर्गेज आदि की जानकारी हो।

यदि आपकी इसमें रुचि है, तो आप कॉमर्शियल, इंडस्ट्रियल ऐंड ऑफिस या फार्म ऐंड लैंड ब्रोकरेज में से किसी में भी करियर बना सकते हैं।

इंजीनियरिंग: किसी भी लैंड को डेवलप करने और उस पर निर्माण करने के लिए कई तरह के इंजीनियरिंग स्टाफ की जरूरत होती है। सारा निर्माण कार्य इन्हीं की देख-रेख में होता है। इनमें सिविल इंजीनियर, आर्किटेक्ट, सुपरवाइजर, प्रोजेक्ट इंजीनियर, प्रोजेक्ट हेड जैसे पदों पर इंजीनियर्स की नियुक्ति की जाती है। इन पदों पर बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग (बीई) या डिप्लोमा होल्डर्स को रखा जाता है।

एकाउंट्स: बडे पैमाने पर पैसे का लेन-देन होने के कारण रियल इस्टेट कंपनियों में एकाउंट डिपार्टमेंट खासी अहमियत रखता है। इन कंपनियों में सीए और बीकॉम किए हुए प्रोफेशनल को एकाउंट डिपार्टमेंट में रखा जाता है। यदि रियल इस्टेट फील्ड में अनुभव है, तो वरीयता दी जाती है।

रियल इस्टेट रिसर्च: ब्रोकर्स, प्रॉपर्टी मैनेजर्स और फाइनेंसिंग एक्सप‌र्ट्स आदि सभी रिसर्चर पर ही निर्भर रहते हैं। रियल इस्टेट रिसर्चर दो प्रकार के रिसर्च करते हैं- फिजिकल और इकोनॉमिक रिसर्च। फिजिकल रिसर्च के अंतर्गत बिल्डिंग्स और कंस्ट्रक्शन मैटीरियल्स के बारे में रिसर्च करते हैं, जबकि इकोनॉमिक रिसर्च में यह रिसर्च करते हैं कि वर्तमान में किस तरह की मांग है, भविष्य में किस तरह के बायर घर खरीदेंगे और किन शहरों में किस तरह के प्रोजेक्ट फायदेमंद होंगे? इस तरह के रिसर्चर को कंपनियों में अच्छी सैलरी पर रखा जाता है।

मार्केटिंग: एक बिल्डर या डेवलपर के लिए उसका प्रॉजेक्ट भी एक प्रॉडक्ट होता है। उसे अधिक से अधिक कीमत पर सेल करने के लिए मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव की आवश्यकता होती है। ऐसे पदों पर आमतौर पर एमबीए ग्रेजुएट को रखा जाता है। छोटी कंपनियों में इस पद पर सिंपल फ्रेश ग्रेजुएट भी रखे जाते हैं।

काउंसलिंग: इन दिनों इसकी काफी मांग है। प्रॉपर्टी से संबंधित सभी समस्याओं से ये वाकिफ होते हैं और उनसे निकलने के लिए बेहतर सलाह देते हैं। ये फाइनेंस और इन्वेस्टमेंट के विशेषज्ञ होते हैं। यदि इससे संबंधित डिग्री और पर्याप्त अनुभव है, तो आप फ्रीलांस काउंसलर बनकर भी बेहतर कमाई कर सकते हैं।

कहां हैं अवसर

सुपरटेक के सीएमडी आरके अरोडा कहते हैं कि रियल इस्टेट इंडस्ट्री में फिर से नौकरियों की बहार आ रही है। हमारी कंपनी सेल्स स्टाफ की काफी संख्या में भर्ती की योजना बना रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूनिटेक अब मध्यम आय वर्ग के लोगों के लिए भी मकानों का निर्माण कर रही है। यूनिटेक ने बीते कुछ महीनों में विभिन्न पदों पर कम से कम 300 कर्मचारियों की नियुक्ति करने की योजना बनाई है।

ओमेक्स ग्रुप के सीएमडी रोहतास गोयल के अनुसार, हमारी कंपनी हमेशा इनोवेटिव आर्किटेक्ट, सिविल इंजीनिर्स और सेल्स प्रोफेशनल को वरीयता देती है। हमारे यहां सौ से अधिक रियल इस्टेट प्रोफेशनल नियुक्त करने की योजना है। कुछ कंपनियों ने एक रणनीति के तहत मकानों की बिक्री ब्रोकर के जरिए नहीं करने का फैसला किया है। ग्राहकों से सीधा संबंध बनाने के लिए काफी संख्या में कर्मचारियों को नियुक्त करने की योजना है।

फ्यूचर प्रॉस्पेक्ट्स

सुशील वत्स कहते हैं कि मंदी के पहले सभी बिल्डर्स बडे बजट का प्रोजेक्ट बडे शहरों में ही बनाते थे, लेकिन अब वे छोटे शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। इस कारण अधिक संख्या में कर्मचारियों की जरूरत पडेगी। अगर बिल्डर्स कम बजट में सभी को मकान देने में सफल होते हैं, तो मांग में इजाफा होगी।

इसके अतिरिक्त एक ही छत के नीचे घर-गृहस्थी का सारा सामान उपलब्ध कराने के साथ-साथ टॉप क्लास एंटरटेनमेंट की व्यवस्था ने मॉल्स और रिटेल कल्चर को खूब बढावा दिया है। ऐसे मॉल्स छोटे शहरों में भी खूब पॉपुलर हो रहे हैं।

प्रमुख संस्थान

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रियल इस्टेट, मुंबई

गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी ऐंड स्कूल ऑफ प्लानिंग ऐंड आर्किटेक्चर, दिल्ली

एसएम स्कूल ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी, नोएडा

दिल्ली बिजनेस स्कूल, दिल्ली

आईआईएलएम इंस्टीट्यूट फॉर हायर एजुकेशन, गुडगांव

आकृति इंस्टीट्यूट ऑफ रियल इस्टेट मैनेजमेंट ऐंड रिसर्च, मुंबई

इंस्टीट्यूशन ऑफ इस्टेट मैनेजर ऐंड एप्रेजर्स, कोलकाता

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रियल इस्टेट, इन्वेस्टमेंट ऐंड फाइनेंस, दिल्ली

सेंट जेवियर कॉलेज, कोलकाता।

सेंटर फॉर कंटीन्युइंग ऐंड डिस्टेंस।

हिट करें टारगेट

इन दिनों किस प्रोफेशन का युवाओं में सबसे ज्यादा क्रेज है? इस बाबत हाल ही में हुए एक सर्वे हुआ। इसके मुताबिक, अधिकांश युवा प्रोफेसर के पेशे को पहले नंबर पर मानते हैं और दूसरे नंबर पर डॉक्टर के पेशे को। बेशक कई विकल्प होने के बावजूद डॉक्टर का क्रेज शायद कभी खत्म नहीं होगा।

डॉक्टर का पेशा मतलब संबंधित फील्ड का गहन ज्ञान, अत्यधिक धैर्य और जबरदस्त संवेदनशीलता। क्या आप हैं तैयार इस पेशे में आने के लिए? ऐसा न हो कि आप भी बन जाएं उन हजारों-लाखों प्रतिस्पर्धियों की भीड का हिस्सा, जो जरा-सी चूक की वजह से अपने सपने से समझौता कर बैठते हैं। इसलिए तैयारी ऐसी रखें, जिससे आपका निशाना बैठे एकदम अचूक।

नींव मजबूत हो तो..

नींव मजबूत हो, तो बडी से बडी और मजबूत इमारत खडी की जा सकती है। मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी के समय भी आपको यही मूल मंत्र ध्यान रखना होगा। यदि 10वीं-12वीं कक्षा के स्तर के फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी पर पकड अच्छी है, तो समझ लीजिए आपकी आधी तैयारी यूं ही हो गई। इन विषयों पर अच्छी पकड का मतलब है अवधारणात्मक ज्ञान के साथ-साथ विषयों के एप्लिकेशंस की बेहतर समझ।

तैयारी के लिए कोई जादुई मंत्र नहीं है। इसके लिए आपको एक खास रणनीति के तहत पढाई करनी होगी। फिजिक्स में ज्यादा से ज्यादा फार्मूले तैयार करने चाहिए। इसमें टारगेट रखें कि न्यूमेरिकल्स नियत अवधि में कम्पलीट हो जाए। केमिस्ट्री की तैयारी टेबलर फॉर्म में करें और उसे लगातार रिवाइज करते रहें।

यदि बायोलॉजी अधिक प्रिय है, तो इसका अर्थ नहीं कि आप फिजिक्स के प्रति लापरवाही बरतें। इसी तरह, केमिस्ट्री अच्छी लगती है, तो बायोलॉजी से कन्नी न काटें। साथ ही याद रखें, टेक्स्ट बुक की अनदेखी कर दूसरे स्रोतों पर पूर्ण निर्भरता परीक्षा के अंतिम समय में भारी पड सकती है। भले ही आपको कुछ चैप्टर बोरिंग लगते हों, उन्हें बिल्कुल अनदेखा करने की बजाय एक बार जरूर पढ डालें। क्या पता उसी खास हिस्से से ज्यादा प्रश्न पूछे जाएं और वही बन जाएं सिलेक्शन के चंद निर्णायक प्रश्न।

मात्रा बडी या गुणवत्ता

क्वालिटी इज मोर इंपॉर्टेंट दैन क्वांटिटी-अंग्रेजी के इस प्रचलित कहावत पर ध्यान देने की जरूरत है। चूंकि आपके पास कम समय है। इसलिए अब सभी किताबों व ढेर सारे मैटीरियल्स को पढने-समेटने की बजाय, कम से कम और उपयोगी स्रोतों को ही फॉलो करें।

जैसे, एनसीईआरटी के बुक्स, किसी अच्छे कोचिंग इंस्टीट्यूट्स के टॉपिकवाइज नोट्स और एक संपूर्ण कही जाने वाली गाइड बुक, इस दिशा में ज्यादा मददगार हो सकते हैं। रोजाना इन्हीं से अभ्यास करें। एनसीईआरटी की बुक्स में दिए नोट्स को दोहराना न भूलें। उसमें दिए एक्सरसाइज को जरूर करें। इस तरीके से आप खुद को बेहतर स्थिति में महसूस करेंगे। जो पढा है, जिस किताब से पढा है, वह साफ-साफ आपको याद होगा।

मतलब साफ है, आप कठिन प्रश्न भी आसानी से हल कर सकेंगे, असमंजस या कन्फ्यूजन की संभावना कम से कम होगी।

बचाव रेड वायर सिंड्रोम से

ज्यादातर मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं में निगेटिव मार्किंग होती है। अभ्यर्थियों के लिए यह एक बडा फियर-फैक्टर है। यदि पहली बार मेडिकल प्रवेश परीक्षा में बैठने जा रहे हैं, तो जरूरी है कि आपको रेड वायर सिंड्रोम के बारे में पता हो।

दरअसल, परीक्षा में अमूमन चार स्तर के प्रश्न पूछे जाते हैं। पहले स्तर के प्रश्न वे हैं, जिनका सौ प्रतिशत उत्तर आपको पता होता है। दूसरे में आपको पचहत्तर प्रतिशत उत्तर आते है। तीसरे में मामला फिफ्टी-फिफ्टी का होता है और चौथे स्तर के सवालों का जवाब आपको बिल्कुल पता नहीं होता। जो अभ्यर्थी चौथे स्तर के सवाल भी देने के प्रलोभन से खुद को रोक नहीं पाते, वही हो जाते हैं रेड वायर सिंड्रोम के शिकार। परिणाम यह होता है कि यही बन जाता है उनकी विफलता का बडा फैक्टर।

इसलिए कोशिश यह होनी चाहिए कि प्रश्न-पत्र मिलते ही आप सभी सवालों को चार वर्गो में बांट लें, फिर उनके जवाब लिखें। वैसे, इस सिंड्रोम से बचने के लिए मॉडल प्रश्नों और पिछले साल के प्रश्नों का अधिकतम अभ्यास करें। अभ्यास के लिए अलग-अलग मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं के पिछले वर्ष के प्रश्न-पत्रों का सेट हो, तो अच्छा। इससे सभी प्रवेश परीक्षाओं के प्रश्न-पत्रों की प्रकृति समझने में आसानी होगी।

पिछले वषरें के प्रश्नपत्रों के आधार पर सिलेबस के उन हिस्सों की पहचान करें, जिससे ज्यादा प्रश्न पूछे जाते हैं। कोशिश करें कि प्रश्न हल करने के बाद कमजोर पक्षों को दूर करने का प्रयास हो।

कोचिंग की जरूरत

इसमें कोई दोराय नहीं कि बेहतर कोचिंग संस्थान आपकी तैयारी को सही दिशा देते हैं। इसमें परीक्षा पूर्व रिहर्सल हो जाती है। आप नई-नई जानकारियों से अपडेट होते रहते हैं। कोई विषय कमजोर है, तो सामूहिक तैयारी से कमजोरी को दूर कर सकते हैं।

कब करें कोचिंग? यदि आपको लगता है कि सिलेबस कवर होने के बाद भी कई तरह की समस्याएं हैं, तो कोचिंग ज्वाइन करें। कोचिंग को कारगर बनाना आपके हाथ में है। कोचिंग क्लासरूम में पढाए जाने वालेलेक्चर्स पर अमल करें, होने वाले टेस्ट में हिस्सा लें और अपना बेस्ट देने का प्रयास करें। ऑल द बेस्ट!

प्रस्तुति : सीमा झा

seemajha@nda.jagran.com

रिवीजन का हिट फार्मूला

रिवीजन, रिवीजन और रिवीजन-यही एक मंत्र है, जिसे इस वक्त आपको याद रखना है। रिवीजन के लिए जितने चैप्टर्स हैं, उन्हें तीन हिस्सों-सबसे कठिन चैप्टर्स, मध्यम स्तर के मुश्किल चैप्टर्स और सबसे आसान चैप्टर्स में बांट लें। इनसे संबंधित पांच-पांच की-व‌र्ड्स (संबंधित सब्जेक्ट के मूल अवधारणाओं से जुडे कुछ खास शब्द) तैयार करें। इन की-व‌र्ड्स को मन में दोहराते रहें। अगर दोहराव के दौरान अटकते हैं, तो समझ लीजिए अभी तैयारी पूरी नहीं हुई है, क्योंकि आपने अवधारणाओं को पूरी तरह नहीं समझा है। यह एक वैज्ञानिक तरीका है, आजमाएं जरूर लाभ होगा।

एआईपीएमटी व अन्य मेडिकल एंट्रेस एग्जाम

एआईपीएमटी-2010 के लिए तिथियों की घोषणा कर दी गई है। प्रारंभिक परीक्षा 3 अप्रैल, 2010 को और फाइनल परीक्षा 16 मई, 2010 को होगी। आवेदन करने की अंतिम तिथि 4 दिसंबर है।

प्रवेश परीक्षा में शामिल होने के लिए 50 प्रतिशत अंकों के साथ बारहवीं उत्तीर्ण होना चाहिए।

अधिकतम उम्र 25 साल से अधिक नहीं होनी चाहिए।

अधिक जानकारी के लिए लॉग ऑन करें-

www.aipmt.nic.in

एमबीबीएस में एडमिशन के लिए अखिल भारतीय स्तर और राज्य स्तर पर कई परीक्षाएं ली जाती हैं। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज यानी एम्स जैसे बडे और ख्यातिप्राप्त संस्थान सीधे प्रवेश परीक्षा आयोजित करते हैं।

विभिन्न राज्यों के प्री-मेडिकल टेस्ट

गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली

वर्धा मेडिकल कॉलेज-वर्धा, आ‌र्म्ड फोर्स-पुणे आदि।