मेडिसिन इंडस्ट्री मैनेजर भी होते हैं यहां

मेडिसिन इंडस्ट्री आज दुनिया की सबसे तेजी से बढते उद्योगों में से एक है। यही कारण है कि इसमें दवाओं के वितरण, मार्केटिंग, पब्लिक रिलेशंस, फार्मा मैनेजमेंट आदि में स्किल्ड लोगों की मांग में काफी तेजी आ गई है।

कोर्स और योग्यता

देश में 100 से अधिक संस्थानों में फॉर्मेसी में डिग्री कोर्स और 200 से अधिक संस्थानों में डिप्लोमा कोर्स चलाए जा रहे हैं। इसमें बारहवीं के बाद सीधे डिप्लोमा किया जा सकता है। फार्मा रिसर्च में स्पेशलाइजेशन के लिए एनआईपीईआर यानी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मा एजुकेशन ऐंड रिसर्च जैसे संस्थानों में प्रवेश ले सकते हैं। दिल्ली स्थित एपिक इंस्टीट्यूट द्वारा फार्मास्युटिकल मैनेजमेंट में तीन वर्षीय डुएल अवॉर्ड प्रोग्राम चलाया जा रहा है। इसमें बीएससी (केमिस्ट्री या बायोलॉजी के साथ), बीफार्मा या डीफार्मा कर चुके अभ्यर्थी प्रवेश के पात्र हैं। इस कोर्स के तहत पहले वर्ष पीडीपीएम यानी प्रोफेशनल डिप्लोमा इन फार्मास्युटिकल मैनेजमेंट की उपाधि दी जाती है, जबकि दूसरे व तीसरे वर्ष एमबीए-फार्मा मैनेजमेंट की डिग्री दी जाती है। खास बात यह है कि पहले वर्ष के बाद जॉब के साथ-साथ भी कोर्स पूरा किया जा सकता है। कुछ विश्वविद्यालयों द्वारा फार्मा मैनेजमेंट में दो वर्षीय एमबीए पाठ्यक्रमों की शुरुआत की गई है, जिसमें प्रवेश के लिए स्नातक होना जरूरी है। जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली में मार्केटिंग में विशेषज्ञता के साथ एमफार्मा कोर्स भी उपलब्ध है। कुछ जगहों पर बीबीए (फार्मा मैनेजमेंट) कोर्स भी चलाया जा रहा है। यह तीन वर्षीय स्नातक कोर्स है, जिसमें छात्र 10+2 के बाद प्रवेश ले सकते हैं। इसके साथ-साथ पीजी डिप्लोमा इन फार्मास्युटिकल एवं हेल्थ केयर मार्केटिंग, डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग, एडवांस डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग एवं पीजी डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग जैसे कोर्स भी संचालित किए जा रहे हैं। इन पाठ्यक्रमों की अवधि छह माह से एक वर्ष के बीच है। इनके लिए अभ्यर्थी की न्यूनतम योग्यता बीएससी, बीफार्मा अथवा डीफार्मा निर्धारित की गई है।

खासियत फार्मा मैनेजमेंट की

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मा मार्केटिंग, लखनऊ के निदेशक पी. ऋषि मोहन कहते हैं कि सामान्य उत्पादों की मार्केटिंग के लिए जहां सीधे डीलर या कस्टमर से संपर्क करना होता है, वहीं दवाओं की मार्केटिंग में डॉक्टर अहम कडी होता है। दवा की खूबियों के बारे में डाक्टरों को संतुष्ट करना जरूरी होता है, तभी वे इसे मरीजों के प्रिस्क्रिप्शन में लिखते हैं। इसके अलावा दुकानों में दवा की उपलब्धता का पता भी रखना होता है। इन्हीं जरूरतों को देखते हुए फार्मा मैनेजमेंट कोर्स की शुरुआत की गई है। फार्मा मैनेजमेंट के क्षेत्र में काम करने के लिए मैनेजमेंट के साथ दवा निर्माण में इस्तेमाल होने वाले पदार्थों एवं तकनीक का भी ज्ञान होना चाहिए। दवा कंपनियां मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव, मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव अथवा मार्केटिंग ऑफिसर के रूप में प्रशिक्षित लोगों को ही रखना चाहती हैं।

विषय की प्रकृति

फार्मा मैनेजमेंट पाठ्यक्रम के अंतर्गत फार्मा सेलिंग, मेडिकल डिवाइस मार्केटिंग, फार्मा ड्यूरेशन मैनेजमेंट, फार्मा मार्केटिंग कम्युनिकेशन, क्वालिटी कंट्रोल मैनेजमेंट, ड्रग स्टोर मैनेजमेंट, फर्मास्युटिक्स, एनाटॉमी एवं मनोविज्ञान, प्रोडक्शन प्लानिंग, फार्माकोलॉजी इत्यादि विषय पढाए जाते हैं। इन तकनीकी विषयों के अलावा ड्रग डेवलपमेंट और कम्प्यूटर की व्यावहारिक जानकारी भी दी जाती है।

पद

आने वाले समय में इस क्षेत्र में योग्य एवं प्रशिक्षित मेधावी युवाओं की मांग बढेगी और रोजगार के भी अवसर बढेंगे, जिसमें मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव, प्रोडक्ट्स एग्जीक्यूटिव, बिजनेस ऑफिसर अथवा बिजनेस एग्जीक्यूटिव, मार्केटिंग रिसर्च एग्जीक्यूटिव, ब्रांड एग्जीक्यूटिव, प्रोडक्शन एग्जीक्यूटिव, प्रोड्क्शन केमिस्ट, क्वालिटी कंट्रोल और क्वालिटी एश्योरेन्स एग्जीक्यूटिव पद शामिल हैं।

जॉब संभावनाएं

इंडस्ट्री के विशेषज्ञों का मानना है कि इस समय भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग 42 हजार करोड रुपये से अधिक का है, जिसमें निर्यात भी शामिल है। वर्ष 2005 में देश की फार्मा इंडस्ट्री का कुल प्रोडक्शन करीब 8 बिलियन डॉलर था, जिसके वर्ष 2010 तक 25 बिलियन डॉलर हो जाने की उम्मीद है। भारत में इस समय 23 हजार से भी अधिक रजिस्टर्ड फार्मास्युटिकल कंपनियां हैं, हालांकि इनमें से करीब 300 ही ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर में हैं। एक अनुमान के अनुसार, इस इंडस्ट्री में तकरीबन दो लाख लोगों को काम मिला हुआ है। फार्मा इंडस्ट्री की वर्तमान प्रगति को देखते हुए अगले कुछ वर्षों में इस इंडस्ट्री को दो से तीन गुना स्किल्ड लोगों की जरूरत होगी। आर ऐंड डी (शोध व विकास) पर वर्ष 2000 में जहां महज 320 करोड रुपये खर्च किए गए, वहीं 2005 में यह बढकर 1500 करोड रुपये तक पहुंच गया। इस संबंध में इंडियन फार्मास्युटिकल एसोसिएशन के सेक्रेटरी जनरल दिलीप शाह का कहना है कि भारी मात्रा में निवेश को देखते हुए स्वाभाविक रूप से फार्मा रिसर्च के लिए प्रति वर्ष एक हजार और साइंटिस्टों की जरूरत होगी। दिल्ली स्थित एपिक इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ केयर स्टडीज के डायरेक्टर दीपक कुंवर का कहना है कि यह क्षेत्र आज सर्वाधिक संभावनाओं से भरा है। इसमें दक्ष युवा देशी-विदेशी कंपनियों में कई तरह के आकर्षक काम आसानी से पा सकते हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मा मार्केटिंग, लखनऊ के प्रोफेसर ऋषि मोहन का कहना है कि इस क्षेत्र में प्लेसमेंट की स्थिति बहुत अच्छी है।

कमाई

प्रशिक्षित लोगों की मांग देखते हुए इस क्षेत्र में सैलरी भी काफी तेजी से बढ रही है। रिसर्च और एंट्री लेवल पर सैलरी डेढ लाख रुपये वार्षिक मिलती है। मार्केटिंग क्षेत्र में एक फ्रेशर को तीन-साढे तीन लाख रुपये वार्षिक मिल जाते हैं। दीपक कुंवर बताते हैं कि उनके यहां के स्टूडेंट्स को शुरुआती मासिक वेतन 8 से 15 हजार रुपये तक आसानी से मिल जाता है।

प्रमुख संस्थान

एपिक इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ केयर स्टडीज, डी-62 , साउथ एक्सटेंशन, पार्ट-1, नई दिल्ली-49, फोन 011-24649994

वेबसाइट : www.apicworld.com

ग्लोबल ग्रुप ऑफ इंस्टीटयूशन, पंजाब

वेबसाइट : www.gkfindia.com

इंस्टीटयूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन ऐंड रिसर्च, पुणे

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन, मोहाली, चंडीगढ-62

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मा मार्केटिंग, विकास नगर, लखनऊ

एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट ऐंड रिसर्च, मुंशी नगर, दादाभाई रोड, अंधेरी वेस्ट मुंबई,

ई-मेल : spjicom@spjimr-ernet-in

नरसी मुंजे इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज जेवीपीडी स्कीम, विले पार्ले, मुंबई-56

ई-मेल enquiry@nmims-edu

जवाहर लाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च, बेंगलुरू,

वेबसाइट www-jncasr-ac-in

(विशेषज्ञों से बातचीत पर आधारित)

फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री पर एक नजर

फार्मा बिजनेस या दवा व्यवसाय आज विश्व के चौथे बडे उद्योगों में से एक है।

विश्व व्यापार का 8 प्रतिशत हिस्सा इस उद्योग के अंतर्गत आता है।

भारत का घरेलू फार्मास्युटिकल उद्योग 42 हजार करोड रुपये से अधिक का है।

इसमें 8-10 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि हो रही है।

वर्ष 2010 तक इसके 25 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है।