माइक्रोफाइनेंस: सेवा, शोहरत और संतुष्टि

यदि आप सोशल सेक्टर में करियर बनाने की इच्छा रखते हैं, तो माइक्रोफाइनेंस में बेहतर करियर है। यहां सेवा भी है, समर्पण भी है और साथ ही अपने लिए आय का एक अच्छा जरिया भी। नोबेल पुरस्कार विजेता बांग्लादेश के मोहम्मद युनुस या फिर भारत के विक्रम अकूला दोनों ने ही माइक्रोफाइनेंस के जरिये न केवल लाखों गरीबों को जीने का जरिया मुहैया कराया, बल्कि इससे कई को रोजगार के मौके भी उपलब्ध कराए। इसके साथ-साथ अपने लिए दुनिया भर की शोहरत भी बटोरी है। आप भी इनकी तरह बनने की इच्छा रखते हैं, तो माइक्रोफाइनेंस में करियर बना सकते हैं।

माइक्रोफाइनेंस का दायरा

परंपरागत वित्तीय क्षेत्र के उलट माइक्रोफाइनेंस जरूरतमंदों गरीबों को वित्तीय ऋण मुहैया कराता है। यह राशि 500 रुपये भी होती हैं और 50,000 भी। इनके दायरे में छोटे आय वाले वे सभी व्यक्ति होते हैं, जिनको व्यवसाय चलाने के लिए छोटी रकम भी जुटाना मुश्किल होता है। चूंकि बैंकों से ऋण लेना एक मुश्किल काम होता है, इसलिए माइक्रोफाइनेंस संस्था ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें अपनी आजीविका चलाने के लिए ऋण देने के अलावा प्रशिक्षण सुविधा भी उपलब्ध कराता है। इसके लिए गैर-सरकारी संगठन भी बढ-चढकर हिस्सा ले रहे हैं।

एसकेएस इंडिया के संस्थापक व सीईओ विक्रम अकूला के अनुसार, भारत में 40 करोड से अधिक गरीब परिवार हैं, जिनके लिए कुल 3,60,000 करोड रुपये ऋण की जरूरत है, जबकि वर्तमान में सक्रिय माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं द्वारा 20,000 करोड रुपये ही मिल पा रहे हैं। इस लिहाज से देखा जाए, तो भारत में माइक्रोफाइनेंस के क्षेत्र में भविष्य की संभावनाएं काफी है।

अवसर

माइक्रोफाइनेंस के क्षेत्र में रोजगार मुख्यत: तीन स्तर पर उपलब्ध हैं :

एंट्री लेवल : एंट्री लेवल पर स्थानीय अंडरग्रेजुएट लोगों की नियुक्ति की जाती है।

मिडिल लेवल : मिडिल लेवल या एग्जीक्यूटिव लेवल पर गे्रजुएट तथा अंडरग्रेजुएट की नियुक्ति की जाती है। इनके लिए समुचित प्रशिक्षण की भी व्यवस्था होती है।

सीनियर लेवल : सीनियर लेवल पर मैनेजेरियल पोस्ट आते हैं। इसके अंतर्गत मैनेजमेंट प्रोफेशनल और ग्रेजुएट्स की बडी डिमांड है।

जॉब सिक्योरिटी

यह क्षेत्र प्रारंभिक अवस्था में ही है। इस कारण इसमें अवसर ही अवसर हैं। हाल ही में दक्षिण भारत में सक्रिय माइक्रोफाइनेंस संस्थाएं उत्तर भारत की ओर रुख कर रही है। उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश, पंजाब आदि में निम्न आय वाले परिवारों की संख्या अधिक है। यही कारण है कि माइक्रोफाइनेंस संस्थाएं यहां अपना कारोबार फैलाने की तैयारी में है।

एसकेएस वाइस प्रेसिडेंट (एचआर) मंजुशा राउलकर के अनुसार, चालू वित्त वर्ष में एसकेएस ने 9 हजार करोड रुपये ऋण बांटने का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा अन्य माइक्रोफाइनेंस संस्थाएं, जैसे बेसिक्स व सिडबी भी इस राह पर हैं।

संस्थान

इंडियन स्कूल ऑफ माइक्रोफाइनेंस फॉर वीमन,

अहमदाबाद

दिल्ली स्कूल ऑफ सोल वर्क

इंस्टीट्यूट फॉर फाइनेंशियल मैनेजमेंट ऐंड रिसर्च, चेन्नई

इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आणंद, गुजरात

जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, भुवनेश्वर

इंटरप्राइज डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट

संजय कुमार

चुनौतीपूर्ण व सम्मानित करियर

माइक्रोफाइनेंस प्रारंभिक अवस्था में है। इस कारण इसमें बेहतर भविष्य है। गत कुछ वर्षों में माइक्रोफाइनेंस काफी चर्चा में आया है, इसकी वजह?

वर्ष 2006-07 की बात है, जब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने अपनी क्रेडिट पॉलिसी में कई स्तरों पर बदलाव की घोषणा की। राज्य स्तर पर काम करने वाले बैंक, समितियों को यह आदेश दिया गया कि राज्य के किसी भी एक जिले में सौ फीसदी लोगों तक इसकी पहुंच होनी चाहिए। पिछले कुछ वर्षों में कुछ वित्तीय बैंक और निजी कंपनियां भी इस क्षेत्र में प्रवेश कर चुकी हैं। यह प्रयोग भारत में भी सफल हो रहा है, जिसके कारण इस ओर सभी आकर्षित हो रहे हैं।

करियर के लिहाज से कैसा क्षेत्र मानते हैं?

रोजगार का स्तर और इसकी प्रकृति ऐसी है कि यह प्रत्येक लेवल पर आकर्षण पैदा करता है। समाज सेवा तो है ही। छोटे स्तर से लेकर बडे स्तर तक हर जगह नौकरी की गुंजाइश है। एंट्री लेवल पर फील्ड स्टाफ या लोन ऑफिसर की नियुक्ति की जाती है। सीनियर स्तर पर फे्रश मैनेजमेंट की अधिक आवश्यकता है। एरिया मैनेजर के रूप में इनकी नियुक्ति होती है। इन पर काफी जिम्मेदारियां होती हैं, साथ ही इन्हें डिसीजन मेकिंग का भी पूरा अधिकार होता है। यही कारण है कि इनका जॉब प्रोफाइल चुनौतीपूर्ण भी है।

एक प्रोफेशनल के लिए इसमें किस तरह के अवसर हैं?

प्रशिक्षण के उपरांत फील्ड असिस्टेंट को सेंटर्स का आवंटन किया जाता है, जहां से वे अपने कार्य की शुरुआत करते हैं। प्रमोशन तथा ग्रोथ की अपॉरच्युनिटी हर एक लेवल पर है। तीन से चार साल के अनुभव के बाद ब्रांच ऑफिस में डेस्क जॉब हासिल किया जा सकता है। अनुभव बढने के साथ उनको ब्रांच में दूसरे कार्यों, जैसे अकाउंटिंग तथा एडमिनिस्ट्रेशन का कार्यभार भी दिया जा सकता है। पर्याप्त अनुभव हासिल कर लेने के बाद यूनिट हेड भी बनाया जा सकता है। इसी प्रकार प्रोन्नति के जरिये असिस्टेंट ब्रांच मैनेजर भी बनाया जा सकता है।

भारत में माइक्रोफाइनेंस का भविष्य कैसा है?

आज कई लोग इस क्षेत्र में सहयोग दे रहे हैं। गैर-सरकारी संगठन भी इसमें बडी संख्या में सहयोग के लिए आगे आ रहे हैं। लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए, उनकी आजीविका के लिए ऋण प्रदान करने से लेकर उनको प्रशिक्षित करने जैसी व्यवस्था भी दी जा रही है। भारत की एक बडी आबादी निम्न आय वाली है, जिनको आर्थिक मदद की दरकार है।

(मंजुशा राउलकर, वाइस प्रेसिडेंट, ह्यूमन रिसोर्स, एसकेएस माइक्रोफाइनेंस)