डाइंग डिक्लेयरेशन

पढ़ाई में ग्रेजुएशन के दौरान ही उसकी शादी के चर्चे शुरू हो गये। मां और दादी उसकी खूबसूरती पर मोहित होकर कहतीं कि उसकी जोड़ का दूल्हा मिलेगा कहां?

अन्तत: एक दिन ऐसा आया कि उसके घर के दरवाजे पर शहनाईयां बजने लगीं। घरवालों की पसंद पर नम्रता की सहेलियां और पड़ोस की औरतें वाह-वाह कर उठीं कि क्या खूबसूरत दूल्हा खोजा है नम्रता के पापा ने।

सुहागरात आयी और गयी भी। विकास ने नशे में झूमते हुए, आंखें खोलने और अपने कदमों पर खड़े होने का भरपूर प्रयास करते हुए फूलों की लड़ियों का सहारा लेना चाहा परन्तु फूलों की लड़ियां इतनी कमजोर थीं कि उसके भार को सहन नहीं कर सकीं और सुहागरात के पलंग पर विकास के सीने और बाहों के नीचे दबकर बिखर गई।

सुबह दरवाजा ठकठकाने की आवाज पर उसने उठकर दरवाजा खोला तो देखा उसकी छोटी एवं बड़ी ननदें मुस्कराते हुए दरवाजे पर चाय लेकर खड़ी है। बड़ी ननद की मुस्कराहट में उसको कसैलेपन का आभास हुआ। छोटी ननद विभा की उम्र लगभग 14 वर्ष थी और वह शरमाकर भाग गयी। नम्रता ने दरवाजा बन्द कर दिया और विकास को जगाने लगी। बड़ी मुश्किल से विकास जागा तो उसने देखा कि रात का दूध ठंडा हो चुका था और चाय भी लगभग ठंडी हो चुकी थी। सॉरी! कहकर दो घूंट में चाय समाप्त कर विकास बाहर निकल गया। नम्रता ठगी सी उसे जाते देखती रही। पराया शहर, पराये लोग। एक पति तो वह भी परायों जैसा व्यवहार कर रहा था। परन्तु इनमें एक शख्स ऐसा था जो उसको अपना लगा था। वह थी छोटी ननद विभा। बातों ही बातों में उससे नम्रता ने यह जाना कि विकास घनघोर शराबी है और नम्रता के पूर्व उसकी शादी उसके बहनोई की चचेरी बहन प्रिया से होनी थी। दोनों साथ ही पढ़े थे। विकास के बड़ी बहन की शादी इसी शहर में बगल वाले मुहल्ले में हुई थी। यह भी ज्ञात हुआ कि विकास और प्रिया की शादी के लिये विकास के पापा ने 10 लाख रुपये दहेज की मांग की थी जिसे नहीं दे पाने के कारण ही विकास की शादी प्रिया से नहीं नम्रता से हुई।

विभा की बात सुनकर नम्रता को जैसे बिजली का झटका लगा हो। तो क्या उसके पिताजी ने 10 लाख रुपये दहेज में दिये थे। मगर कहां से?

उसे याद हो आया कि कैसे उसकी शादी के दो तीन माह पूर्व उसकी मां के कर्णफूल और हाथों की सोने की चूड़ियां और नाक की पुरानी घुरानी हीरे की कील गायब हो गयी थी। दादी के हाथों की चूड़ियां भी गायब हो गयीं थीं। शादी की व्यस्तता में वह इस बात पर ध्यान नहीं दे पायी थी। अब उसे मां और दादी के गहनों के गायब होने का राज समझ में आ गया था।

दोपहर में विकास ने एक लड़की के साथ कमरे में प्रवेश किया। विकास ने बताया था कि वह प्रिया से बेहद प्यार करता है और पिता की दहेज की जिद के कारण ही उन दोनों की शादी नहीं हो सकी थी। नम्रता ऐसी बात सुनकर अत्यन्त असहज हो गयी थी। थोड़ी देर बाद प्रिया चली गयी तो विकास ने दरवाजा बन्द कर दिया और उसे आगोश में ले लिया परन्तु नम्रता तब तक एक जिंदा लाश में तब्दील हो चुकी थी।

नम्रता इतने कठोर हृदय एवं व्यक्तित्व की नहीं थी कि वह इतना जानने के बाद शादी के बंधन को तोड़तर मायके आ जाती। वह एक पारिवारिक लड़की थी जिसकी शादी पर उसके मायके वालों ने अपनी इज्जात, प्रतिष्ठा के साथ ही साथ आर्थिक ढांचे को भी दांव पर लगा दिया था। उसे यह लगा कि मन नहीं, हां शरीर पर अवश्य ही विकास का अधिकार होगा। उस अधिकार को समाप्त करने का कोई उपाय उसे नहीं सूझा।

मायके वालों ने कई बार नम्रता को ले जाने की कोशिश किया परन्तु ससुराल वालों ने नम्रता के विदाई की यह शर्त लगा रखी थी कि मायके वाले दहेज की शेष दो लाख रुपये अदा कर दें। मां और दादी नम्रता और उसके बच्चों को देखने के लिए हलकान थे। परन्तु शर्त पूरी न होने की दशा में वे अपनी इच्छा को पूरा नहीं कर सकते थे।

एक दिन उसका भाई आया और बताया कि पापा ने बगीचे को बेचकर एक लाख रुपये नम्रता के ससुराल वालों को पहुंचा दिया है। ससुराल वालों ने फिर भी नम्रता को विदा नहीं किया।

नम्रता के सतरंगी सपने बदरंग हो चुके थे। बच्चों के अतिरिक्त नम्रता के जीने का अन्य कोई आधार नहीं रह गया था। बच्चों के कुछ बड़े होने तथा अपने पैरों पर चलने की स्थिति आते ही उसके दुर्दिन और भी बढ़ गये। अब बात-बात पर नम्रता की पिटाई होने लगी। विकास की बेशर्मी और हठधर्मिता अब इतनी बढ़ गयी थी कि वह प्राय: प्रिया को उसके कमरे में लेकर चला आता था और उसे बाहर जाने का आदेश दे दिया करता था।

अन्तत: वह भयानक दिन आ गया। विकास प्रिया को लेकर उसके कमरे में आ गया। समन्दर ने उसके सामने ही प्रिया रूपी नदी को अपने आगोश में ले लिया। पहली बार नम्रता से ऐसी बेशर्मी सहन नहीं हो सकी। नम्रता ने विकास को धिक्कारा तथा प्रिया को भी जो उसके आशियाने को आग की भेंट चढ़ा रही थी। विकास ने नम्रता को पागलों की भांति पीटना प्रारंभ कर दिया था। प्रिया जा चुकी थी। विभा ने जो अब सयानी हो चुकी थी, ने बीच बचाव करना चाहा तो उसे भी कुछ चोटे खानी पड़ी। बच्चे चिल्लाने लगे तो उन्हे मां से दूर कर दिया गया।

शाम ढलती गयी और रात हो गयी। नम्रता को मारपीट कर कमरे में बन्द कर विकास छत पर चला गया। छत पर जेठ जेठानी, सास श्वसुर, विकास एवं प्रिया के अभिभावकों में कोई गुपचुप वार्ता चल रही थी। नम्रता को यह मालूम था कि विकास के साथ प्रिया के अवैध रिश्ते जगजाहिर हो चुके थे फिर भी अपने दोनों बच्चों की खातिर जीना चाहती थी। आदमी सोचता कुछ है और होता कुछ है। उसकी आंखें मुंद गयी। तन्द्रा टूटी तो उसने खुद को किचन में पाया जहां उसे वास्तव में राक्षसों और दैत्यों ने घेर रखा था। वहां उसके अपने समन्दर के एक हाथ में कैरोसीन के तेल का कनस्तर था तो दूसरे हाथ में दियासलाई। अब वह समन्दर के हाथों धू धू करके जल रही थी।

नम्रता के ससुराल वालों ने उसे अस्पताल में भर्ती किया तथा उसके मायके वालों को भी सूचित किया। उन्हे पूरी उम्मीद थी कि नम्रता मायके वालों के आने के पूर्व ही मर चुकी होगी। परन्तु बुरा हो इमरजेंसी के डाक्टर का जिसे पटाने में ससुराल वाले असफल रहे। डाक्टर ने नम्रता को 90 प्रतिशत जली अवस्था में अस्पताल में लाना रजिस्टर में अंकित किया और कोतवाली को भी सूचित कर दिया।

कोतवाली से एक नया तेज तर्रार दरोगा आया और उसने डाक्टर से सलाह मशविरा किया। डाक्टर ने बताया कि 90 प्रतिशत जले होने की दशा में मरीज एक दो घंटे का ही मेहमान होता है। दरोगा ने नम्रता के ससुराल वालों से पूछताछ की। ससुराल वालों ने बताया कि बिजली चली जाने पर जब नम्रता ने मिट्टंी के तेल को लैम्प में भरकर जलाना चाहा तभी असावधानीवश उसके कपड़ों में आग लग गयी। बिजली न होने से सभी लोग छत पर थे। जब तक दौड़कर आते, तब तक नम्रता बुरी तरह जल चुकी थी।

दरोगा ने मैजिस्ट्रेट को चिट्ठी लिखकर नम्रता का मृत्युकालिक कथन लिखने के लिए निवेदन किया। नम्रता के चेहरे पर सुकून के भाव थे। अब वह अंतिम समय में स्वयं को छलना नहीं चाहती थी। लोग कहते हैं कि मरने वाला कभी झूठ नहीं बोलता। उसका सारा दर्द जैसे काफूर बनकर उड़ गया। वह विकास रूपी राक्षस को सजा दिलाने की व्यवस्था कर दुनिया से कूच कर जाना चाहती थी।

दरोगा ने उसके ससुराल वालों को हिरासत में ले लिया था। उनके चेहरे निस्तेज हो चुके थे। विकास जानता था कि मैजिस्ट्रेट ने डांइग डिक्लेयरेशन लिया नहीं कि उसकी फांसी निश्चित है नम्रता ने डूबती सांसों में निस्तेज आंखों से अपने बच्चों को देखा और धीरे से इशारे से उसने गुड़िया और रानू को बुलाया। दोनों बच्चे धीरे-धीरे डरते-डरते अपनी मां के पास पहुंचे। मां ने बच्चों को आखिरी बार प्यार और दुलार करना चाहा परन्तु वह हतभागिनी ऐसा करने में समर्थ नहीं रह गयी थी।

इसी समय डाक्टर, मैजिस्ट्रेट एवं दरोगा ने प्रवेश किया। डाक्टर ने एक कागज पर लिखकर प्रमाण पत्र दिया कि मजरूब नम्रता देवी अपना डाइंग डिक्लेयरेशन देने में सक्षम है तदुपरान्त मैजिस्ट्रेट ने नम्रता का डाईग डिक्लेयरेशन लिखना प्रारंभ करना चाहा।

उस समय नम्रता के मनमस्तिष्क में कशमकश होने लगी। ममता प्रतिशोध पर भारी पड़ने लगी। उसने सोचा कि वह तो मर ही रही है परन्तु उसके बाद उसके बच्चों की देखभाल और परवरिश कौन करेगा? गुड़िया और रानू को कौन पढ़ायेगा लिखायेगा? नहीं-नहीं वह अपने बच्चों को अनाथ करके नहीं जायेगी। बाप के साये की जरूरत हर बच्चे को होती है। सबसे बड़ा न्यायाधीश तो ऊपर बैठा है जो न्याय देता है।

दूसरी ओर उसके मन में प्रतिशोध के भाव आने लगे। नहीं-नहीं वह उस राक्षस को नहीं छोड़ेगी। अन्याय को सहना अन्यायी के प्रयोजन को सिद्ध करने जैसा है। नम्रता वर्तमान में लौट आयी। उसने उखड़ती हुई सांसों को बटोरकर निस्तेज होती हुई नजरों से अपने दोनों बच्चों को देखती हुई डाइंग डिक्लेयरेशन दिया ''मेरा नाम नम्रता पत्नी विकास है। मेरे दो बच्चे रानू और गुड़िया है। मैं बिजली जाने पर लैम्प में केरोसीन का तेल डालकर लैम्प जला रही थी तभी मेरी साड़ी में आग लग गयी। घर के सभी लोग छत पर थे, जब आग न बुझा पायी तो चिल्लाई। छत से घरवालों के आते-आते मैं बहुत अधिक जल चुकी थी। मेरे ससुराल वाले मुझे इलाज के लिए अस्पताल लाये है। वे लोग निर्दोष है। मेरे बच्चों का ख्याल रखना। नम्रता।''

इसी के साथ सांसों ने शरीर रूपी पिंजरे का साथ छोड़ दिया।

[उमेशचंद्र शर्मा]

अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश, वाराणसी