बनाइए करियर की स्ट्रैटजी

अधिक पैसों का प्रलोभन, स्ट्रैटजिक सेक्टर में मिलने वाली चुनौतियों की जगह नहीं ले सकता। अगर विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों का सामना करना आपको पसंद है, तो आप इस क्षेत्र के लिए ही बने हैं- यह कहना है जेएनयू के प्रोफेसर प्रणव एन देसाई का। भारत के स्ट्रैटजिक संगठनों में प्रमुख तीन इसरो, डीआरडीओ तथा डीएई सम्मानित पदों पर रोजगार के अवसर प्रदान करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार के रिसर्च तथा डेवलेपमेंट पर होने वाले खर्च का लगभग 60 फीसदी इन्हीं तीन सेक्टरों तक सीमित है।

डीआरडीओ

डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन यानी डीआरडीओ की स्थापना 1958 में हुई थी। उस वक्त इसके अंतर्गत 10 लेबोरेटरीज कार्य करती थी। आज देश में इसकी 50 लेबोरेटरीज हैं। इनमें 7,500 वैज्ञानिक कार्यरत हैं तथा तकरीबन 22,000 दूसरे साइंटिफिक, टेक्निकल तथा सपोर्टिग स्टाफ हैं।

कार्य

डीआरडीओ की गतिविधियों में मुख्य रूप से भारत की सुरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए नई-नई तकनीकें विकसित करना शामिल है। इसके अंतर्गत आर्मी, नेवी तथा एयरफोर्स की जरूरत के मुताबिक जटिल हथियारों और उपकरणों की डिजाइनिंग, डेवलेपमेंट तथा प्रोडक्शन का कार्य किया जाता है।

रिक्रूटमेंट

डीआरडीओ में साइंटिस्टों की नियुक्ति रिक्रूटमेंट असेसमेंट सेंटर यानी आरएसी द्वारा की जाती है।

डीआरडीओ में एंट्री लेवल पर साइंटिस्ट बी ग्रेड में निम्न स्कीम के माध्यम से प्रवेश पाया जा सकता है-

साइंटिस्ट एंट्री टेस्ट

एजुकेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूशंस जैसे आईआईटी, एनआईटी, आईआईएससी, आइटीबीएचयू, सेंट्रल यूनिवर्सिटी तथा दूसरे प्रमुख संस्थाओं में कैंपस सेलेक्शन के माध्यम से। इसके अंतर्गत साइंटिस्ट सी, डी, ई, जी ग्रेड में भी युवाओं के लिए बेहतरीन अवसर हैं। फेलोशिप के माध्यम से भी इसमें एंट्री होती है।

योग्यता

डीआरडीओ के रिक्रूटमेंट एसेसमेंट सेंटर के डायरेक्टर ऋषभ कुमार जैन बताते हैं, हम वैज्ञानिकों की नियुक्ति का काम देखते हैं- हम बी, सी, डी और ई आदि कई स्तरों पर वैज्ञानिकों की नियुक्ति करते हैं। नियुक्ति के तीन तरीके हैं- पहला तरीका है, कॉमन एंट्रेंस टेस्ट का। यह अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित किया जाता है। दूसरा तरीका है, कैंपस प्लेसमेंट का। इसके अलावा रोसा स्कीम के तहत भी वैज्ञानिकों की नियुक्ति की जाती है। इस योजना में फ्रेश पीएचडी किए हुए लोगों को लिया जाता है। एनआरआई को एडहॉक पर रखा जाता है। डीआरडीओ में आवेदन-पत्र भेजने के लिए स्नातकोतर स्तर पर कम से कम 60 प्रतिशत अंक होने आवश्यक हैं। बीटेक और बीई में भी प्रथम श्रेणी के साथ उत्तीर्ण होना जरूरी है।

अवसर

डीआरडीओ में हजारों की संख्या में साइंटिस्ट हैं। कई वैज्ञानिक अपना क्षेत्र व संस्था बदलते रहते हैं, जिसके कारण यहां वैज्ञानिकों की हमेशा कमी बनी रहती है। इसके अलावा कई नॉन-इंजीनियरिंग या अन्य संस्थाएं भी हैं, जहां रोजगार के बेहतरीन व सम्मानजनक अवसर मौजूद हैं। दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज ऐंड एनालिसिस अग्रणी संस्था है। यहां शोधार्थी के अलावा फेलो, सीनियर फेलो, विजिटिंग फेलो आदि स्तर के कई मौके हैं। इंस्टीट्यूट फॉर कंफ्लिक्ट स्टडीज, ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी भी हैं, जहां शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) द्वारा प्रवेश लिया सकता है। इसके लिए न्यूनतम योग्यता इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन है।

इसरो

भारत सरकार द्वारा जून 1972 में स्पेस कमीशन तथा डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस का गठन किया गया। इसरो से जुडे प्रत्येक सदस्य संगठन की रीढ हैं। इसरो 1975 से लेकर अब तक लगभग 36 से भी अधिक कम्युनिकेशन तथा रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट लांच कर चुकी है। पिछले साल चंद्रयान-1 की सफल लॉन्चिंग भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रति लोगों में आकर्षण को बढाया है। भविष्य में इसकी कई बडी योजनाएं हैं।

रिक्रूटमेंट चैनल

भारतीय स्पेस अभियान को आगे बढाने के लिए डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस के प्रमुख अंग के रूप में नेशनल रिमोर्ट सेंसिंग एजेंसी (एनआरएसए) का गठन किया गया है। एनआरएसए अर्थ ऑब्जर्वेशन प्रोग्राम तथा डिजास्टर मैनेजमेंट सपोर्ट प्रोग्राम के लिए यह प्रमुख रूप से जाना जाता है। एनआरएसए के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों जैसे जियोलॉजी, वाटर रिसोर्स इंजीनियरिंग, हाइड्रोलॉजी, रिमोट सेंसिंग, जियोग्राफिकल इनफॉर्मेशन सिस्टम तथा इनवायरमेंट से जुडे युवा शोधार्थी के लिए रिसर्च एसोसिएट, सीनियर तथा जूनियर फेलोशिप ऑफर किया जाता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (आईआईएसटी) इसरो में एंट्री के लिए प्रमुख माध्यम है।

कहां मिलेगी नौकरी

डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस के अंतर्गत साइंटिस्टों और इंजीनियरों की विक्रम सराभाई स्पेस सेंटर, सतीश धवन स्पेस सेंटर, नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी में हमेशा डिमांड रहती है। लिक्विड प्रोपल्सन सिस्टम सेंटर में ग्रेजुएट ट्रेनी के लिए भी अवसर उपलब्ध हैं। वहीं नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी तथा फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी में पोस्ट के लिए डॉक्टरल फेलो (पीडीएफ), सीनियर रिसर्च फेलो (एसआरएफ), जूनियर रिसर्च फेलो (जेआरएफ) तथा रिसर्च फेलो भी आवेदन कर सकते हैं।

डीएई डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी यानी डीएई की स्थापना 3 अगस्त 1954 में हुई। इसका मुख्य काम न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी का विकास करना है। इसकी मुख्य गतिविधियां पॉवर सेक्टर में न्यूक्लियर पॉवर की साझेदारी बढाने के लिए नई-नई तकनीकों का विकास व प्रयोग, रिसर्च रिएक्टर का निर्माण व प्रयोग, आधुनिक तकनीकों मसलन, लेजर, सुपर कंप्यूटर, रोबोटिक्स, स्ट्रैटजिक मैटीरियल्स, इंस्ट्रूमेंटेशन का विकास तथा न्यूक्लियर एनर्जी के लिए बेसिक रिसर्च जैसे कार्य हैं।

रिक्रूटमेंट चैनल

डीएई द्वारा विभिन्न गतिविधियों को संचालित करने के लिए योग्य साइंटिस्टों, इंजीनियरों तथा टेक्निकल अधिकारियों की हमेशा से डिमांड रही है। डॉ. होमी जहांगीर भाभा के नाम पर 1957 में एक ट्रेनिंग स्कूल की शुरुआत की गई, जिसे भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (बार्क) के नाम से जाना जाता है। सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी (सीएटी), इंदौर, इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च (आइजीसीएआर), कलपक्कम, न्यूक्लियर फ्यूल कॉम्प्लेक्स (एनएफसी), हैदराबाद तथा सेंटर्स ऑफ न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन इंडिया लिमिटेड (कोटा, कलपक्कम तथा कैगा) बार्क ट्रेनिंग स्कूल से संबंद्ध प्रशिक्षण संस्थान हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, अब तक लाखों साइंटिस्ट व इंजीनियर इससे प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं। इन संस्थानों से प्रतिवर्ष लगभग 300 साइंटिस्ट तथा इंजीनियर न्यूक्लियर साइंस तथा तकनीक में प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। प्रशिक्षण के पश्चात डीएई के विभिन्न पदों पर उनकी नियुक्ति आसानी से हो जाती है।

इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च में जूनियर व सीनियर रिसर्च फेलोशिप की भी सुविधा है। चयनित अभ्यर्थी डीएई की डीम्ड यूनिवर्सिटी के अंतर्गत होमी भाभा नेशनल इंस्टीट्यूट में पीएचडी के लिए भी योग्य होते हैं। चयनित छात्रों को छात्रवृत्ति के अलावा अन्य सुविधाएं भी प्रदान की जाती हैं। एटॉमिक एनर्जी से जुडे औद्योगिक क्षेत्र की संस्थाओं में भी ऐसे साइंटिस्टों की बडी डिमांड है। बार्क के सहयोग से न्यूक्लियर फ्यूल कॉम्प्लेक्स, हैदराबाद तथा हैवी वाटर बोर्ड, मुंबई द्वारा सम्मिलित रूप से हैदराबाद में एनएचटीएस की स्थापना की गई है। यह संस्था डीएई के आइएंडएम सेक्टर की जरूरतों को पूरा करता है।

कैसे करें एंट्री

अखिल भारतीय स्तर पर चयनित केमिकल, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड इंस्ट्रूमेंटेशन तथा मैकेनिकल इंजीनियरिंग स्ट्रीम के ग्रेजुएट छात्रों को एक वर्ष का न्यूक्लियर साइंस तथा इंजीनियरिंग में ओरियंटेशन कोर्स कराया जाता है। प्रत्येक छात्र को सभी सुविधाओं के अलावा 8,000 रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति भी प्रदान की जाती है। कोर्स करने के पश्चात इनकी नियुक्ति इन संस्थानों में आसानी से हो जाती है।